आत्महत्या या हत्या
एक समय की बात है कि एक बालक था जिसका नाम दिनेश वह बहुत सुंदर सुशील एवं सभ्य था। उतनी ही उसके अन्दर चंचलता थी. वह एक मेधावी छात्र था वह पढने के साथ साथ खेल कूद व्यवहारिकता उसके अन्दर कुट कुट कर भरी थी!लेकिन ऐसे लोगों को कौन देखना चाहता है, कुछ लोग थे जो इस बालक से ईर्ष्या करते थे ,क्यों कि उनके बच्चों में ऐसी प्रतिभा नहीं थी। पर दिनेश सबको समान भाव से देखा करता था।भेद भाव के नाम की चिज नहीं थी उसके पास। गरीब परिवार से तालुकात रखता था,उसके बड़े भाई का नाम नीतीश वह भी अपने पढ़ाइ में खुब मन लगाकर पढ़ता था उसके दो दोस्त श्याम और सरोज उसके ही गाँव के जब दिनेश घर आता था तो ये दोनों दोस्त उसके साथ साथ दिखाई दिया करते थे।
एक दिन की बात है बाहर निकल कर तीनों दोस्त घूमने फिरने लगे,आपस में ऐसे घुल मिल कर बात कर रहे थे। प्रकृति के गोद में बैठ कर आनन्द ले रहें थे। ईश्वर की मरज़ी कहे या दोस्ती पर किसी की नजर लग गई. तभी अचानक सरोज की हालत बिगड़ने लगी। तब थोड़ी देर बाद बेहोश हो कर गीर पड़ा धरती माँ के गोद में। दोनों दोस्त मिलकर उसे होश में लाने की कोशिश करने लगे, परन्तु सरोज के प्राण पखेरू उड़ गये। दिनेश और श्याम दोस्ती का फर्ज अदा करते हुए उसे अस्पताल तक ले गये एडमिट कराया. डा० साहब जाँच पड़ताल के बाद बताये कि यह मरीज मर चुका है, दिल का दौरा पड़ने के कारण , अब इसे कोई नहीं बचा सकता। उसके बाद दिनेश और श्याम गांव वालों को खबर दिये। बाद में सरोज के परीजन रोने और विलाप करने लगे. घर भर मायूसी नहीं पुरे गाँव छा गई। सरोज के परिवार वालों ने उसकी अपने रीति रिवाज के अनुसार अन्तिम संसकार कर दिये।
कुछ दिनों के बाद दिनेश के प्रति ईर्ष्या करने वाले लोग अपना निशाना साधते हुअे दिनेश के ऊपर इल्जाम लगाने की कोशिश करने लगे। दिनेश के प्रति नाना प्रकार की बात फैला दी गई ताकि वे ढंग से अपना कार्य नहीं कर सके । कहा भी गया है होनी को कौन टाल सकता है जो होने को है होकर ही रहेगा।
समय का पहिया निर्बाध गति से आगे बढ रहा था। दिनेश के प्रति अफवाह फैला दी गई लोगों के बीच में दिनेश को दोषी ठहरा दिया गया. लोग तरह तरह की बातें करने लगे कहा जा रहा था कि दिनेश ही उसे घर से बाहर ले गया था उसका गला दबाकर मात डाला, यही सब बातें कहकर दिनेश को कुसुरवार साबित करना चाहते थे। इन्हीं बातों का दिनेश को भारी सदमा लगा कि वह पागल सा हो गया। उसने अन्त में इस जिल्लत भरी जिंदगी सह नहीं पाया और अपने जिन्दगी पर काबू नहीं कर पाया कुछ दिनों के स्वयं से ही अपने जिन्दगी को समाप्त कर लिया अर्थात आत्महत्या कर ली।
इस घटना से जो लोग दिनेश से ईष्या कर रहें थे वे लोग इतना खुश हुए कि मानो उनके जीवन में सबसे बड़ी कामयाबी मिल गई हो लेकिन जो सच्चाई जानता था वह यह भी जानता था कि दिनेश ने आत्महत्या नहीं उसकी हत्या हुई है ।
रमेश कुमार सिंह
बहुत अच्छी और मार्मिक कहानी.
शुक्रिया श्रीमान जी।
दुःख भरी कहानी. एक अच्छा लड़का सिर्फ लोगों के बुरे विवहार के कारण जान से हाथ धो बैठा , इस लिए हमें कभी भी किसी को दुःख ना दें किओंकि हम तो जल्दी से झूठे इलज़ाम ला देते हैं लेकिन उस इंसान के मन को कितना दुःख पौह्न्चता है इस का धियान होना चाहिए.