हास्य व्यंग्य

चित्रगुप्त की चिन्ता

chitragupt
यमराज का दरबार लगा हुआ था। बार बार हरकारा भेजा जा रहा था, चित्रगुप्त जी को बुलाने के लिए, लेकिन हर बार हरकारा मुँह लटका के वापस आ जाता। यमराज को बड़ा गुस्सा आ रहा था। एक तो चित्रगुप्त पहले ही दस दिन से गायब थे। जैसे तैसे दरबार में दस दिन बाद आए, तो फिर रोज- रोज की देर शुरू कर दी। यमराज को बड़ा गुस्सा आता। एक बस उनके देर में आने की वजह से बाकी सारे काम भी पिछड़ जाते।
हरकारा बार बार जाता, बार बार कहता की आपको महाराज ने बुलाया है; लेकिन चित्रगुप्त हर बार कह देते की चलो हम बस अभी आते हैं। हरकारा बार बार वापस हो जाता और हर बार ही चित्रगुप्त नहीं आते। यमराज जब बहुत ही परेशान हो गए तो अपने महामंत्री से बोले ,फोन लगाओ चित्रगुप्त को, हम खुद बात करेंगे ।
फोन लगाया गया, परंतु बार बार एक ही ध्वनि सुनाई देती; जिस व्यक्ति से आप संपर्क करना चाहते हैं वो अभी कहीं और व्यस्त है ,कृपया थोड़ी देर बाद संपर्क करें। यमराज गुस्से में बोलते आखिर चित्रगुप्त व्यस्त कहाँ हैं? हमारा तो सर ही घूम गया है। हमारा भैंसा तैयार किया जाए, हम खुद ही जाएंगे।
बिलकुल ठीक, तभी उनकी बहन तपाक से बोलीं – अरे भैया ,अभी तक भैंसे की सवारी करते रहते हो। कितना समय बदल गया है, कुछ नई टेक्नॉलॉजी की सोचिए। तभी तो पृथ्वी लोक में आपकी चमक फीकी होती जा रही है। तभी तो आदमी सोचता है, कि यमराज भी क्या ? नौ दिन चले अढ़ाई कोस…..
यमराज गुस्से से बोले – देखो बहन यमुना, पहले अपना हाल देखो ,जब से कृष्ण कन्हैया ने वृंदावन छोड़ा है तभी से तुम्हारी क्या हालत हुई है। अरे अपनी तो अपनी, अपने साथ की बहनों की हालत भी जरा देख लो। अब हमें न सिखाओ, नया नौ दिन पुराना सौ दिन ,ओल्ड इज गोल्ड ,समझीं…….
अरे हमारा भैंसा तैयार किया की नहीं ?
सेवक- जी, जी हुजूर। बिल्कुल, पधारें ।
यमराज पहुंचे चित्रगुप्त के पास तो देखते हैं, की वो अपनी बही में बार बार कुछ काट रहे हैं, कुछ जोड़ रहे हैं। यमराज देख के आग बबूला ,सोचने लगे बार बार हमें बेबकूफ बनाए है की अभी आ रहे; और यहाँ कुछ और ही चला रखा है। चित्रगुप्त का ध्यान अभी भी जब उनकी तरफ नहीं गया तो गुस्से में बोले –
चित्रगुप्त, ये क्या लगा रखा है तुमने ?
चित्रगुप्त एक दम भड़भड़ा गए, सोचने लगे कि हरकारे की आवाज़ यमराज जैसी क्यों सुनाई दे रही है। कहने को हुए, हाँ हाँ, चलो हम आते हैं; कि यमराज को देख चौंक के जी हुजूर जी हुजूर करते हुए उठ खड़े हुए।
चित्रगुप्त – हुजूर गलती हो गयी, आपने बेकार कष्ट किया, हम बस आ ही रहे थे।
यमराज गुस्से में बोले – अगर आ रहे थे, तो आए क्यों नहीं, पहुंचे क्यों नहीं अभी तक? हमें सब पता है आज कल तुम्हारा कोई काम ठीक से नहीं हो रहा है सब ऐसे ही चल रहा है।
कितने पृथ्वी लोक में अपराधी हैं, कितने भले हैं, कितने बुरे हैं। कोई लेखा जोखा तैयार किया है। कितने आए कितने गए कितने परलोक गए, सब व्यवस्था खराब है तुम्हारी।
चित्रगुप्त – हम तो खुद ही परेशान हैं महाराज! अब क्या बताएं,चार साधू लोग का सीट रिजर्व था स्वर्गलोक में लेकिन कोई आदमी नीचे नहीं मिल रहा है। सेवक बोल रहा है, वो चारो तो बड़ा गेंगस्टर है।
दो ठो नटवरलाल को नरक भेजना था, वो भी नहीं मिल रहा है। सेवक बोल रहा है, आजकल बनारस में वो दोनों बाबा बने घूम रहे हैं। साधू, गरीब सब ही बड़ा खुश हैं उनसे। रोज सुबह शाम भंडारा होता है, खूब बढ़िया बढ़िया खाने का सामान मिलता है। कोई काम भी नहीं करना पड़ता है दोनों को। बस कुछ दुखी लोगों को थोड़ा समझाना होता है, थोड़ी सांत्वना देनी होती है, बाकी तो भगवान खुद ही कर देता है। बेचारे वे दुखी लोग इतना खुश हो जाते हैं की मारे खुशी के सोना चांदी और जाने क्या क्या लुटा जाते हैं। सेवक तो ये कह रहा था आज कल कौन किस की बात, दुखड़ा सुनता है। ये दोनों लोग सुनते है तो आदमी में थोड़ा आत्मबल जाग जाता है करने वाले तो खुद ही होते हैं लेकिन हाँ लगता है बाबा तो बड़े चमत्कारी हैं,तो आजकल इनकी दुकान भी खूब चल रही है। सो अब इनको भी नरक नहीं भेज सकते, क्यूंकी नारद मुनि कह रहे थे जो भी हो उनका पुण्य तो बढ़ ही गया। हमारे सेवक उनको पहचान गए हैं; मगर अब उनको नरक नहीं भेज सकते। और जो चार सीट हैं स्वर्गलोक में; हम तो मुह दिखाने के लायक भी नहीं रहे यहाँ पहले से ही उनके स्वागत की सारी तैयारी है। अब अगर उनको वहाँ नहीं भेजते तो एक और समस्या, कि चित्रगुप्त कोई काम नहीं कर रहे। आज कल सब गड़बड़ झाला हुआ है महाराज पृथ्वीलोक में। कुछ आदमी बढ़ाइए जो व्यवस्था सही तरीके से देखें।
यमराज थोड़ा भन्नाकर बोले – चित्रगुप्त, आज कल खूब लड्डू पूड़ी खा रहे हो और हमें समझा रहे हो। अब क्या एक-एक आदमी को लेने हम जाएंगे? अब क्या ये काम भी हम करेंगे? ये भी तुमसे नहीं हो पा रहा? देखो बता दे रहे हैं, तुम्हें सस्पैंड कर देंगे ,छुट्टी कर देंगे तुम्हारी। अपना दिमाग जो है न सुधार लो!
नारद मुनि कहाँ हैं आज कल? अगर तुमसे नहीं हो रहा कुछ तो उनकी सहायता क्यों नहीं ली? उन्हे तो सब के विषय में सब पता रहता है। उनका तो काम ही है आज इधर,कल उधर। फिर उन्हें क्यों नहीं भेजा असली बात पता लगने को की ये सब हो क्या रहा है पृथ्वीलोक में ?
चित्रगुप्त – भेजे थे महाराज, लगभग एक महीना हुआ। वो तो नीचे से उपर ही नहीं आ रहे। एक बड़े नेता जी की प्राणी लेने भेजा था उन्हे, अपने सेवक के साथ। अब उन दोनों का ही कुछ पता नहीं है महीने भर से। पता चला है कि वो नेता जी नारद मुनि को न जाने कौन सी घूंटी पिलाये हैं। उनका एक मंदिर बनवा दिये हैं। नारद मुनि बोल रहे हैं, देखो हम घूम घूम के बहुत थक गए हैं, अब कुछ दिन गुजारेंगे यहाँ आराम से। हमें बिलकुल डिस्टर्ब न किया जाए। एक तो हम पहले ही से परेशान थे और अब ये नारद मुनि परेशान किए हैं, अब आप ही कहो हमारी क्या गलती है?
यमराज,सारा काम चौपट कर रखा है तुमनें और हमसे पूछ रहे हो कि तुम्हारी क्या गलती है? आखिर करते क्या रहते हो तुम ?
चित्रगुप्त – देखिये महाराज, ऐसा लगता है भ्रस्टाचार महामारी की तरह फैल रहा है। जो भी भ्रस्टाचार दूर करने जाता है; पहले तो देख के लगता है, कि भाई देखो कितना महानपुरुष है, कितना त्याग है, इसमें बहुत अच्छा आदमी है। लेकिन ये माया मोह, ये शक्ति सत्ता के मोह से कौन छूट पाया है महाराज। इतिहास गवाह है, सो बाद में वही ढाक के तीन पात! और लो हमारा बहीखाता फिर गड़बड़ का गड़बड़ अब करें तो करें क्या ?
यमराज – बात तो सही कह रहे हो चित्रगुप्त ,कुछ तो करना पड़ेगा। ऐसा है तुम ऐसा करो कुछ बढ़िया साहित्य नीचे भेजो। कुछ अच्छे लोगों की व्यवस्था करो जो जाकर लोगों को अच्छे कामों का महत्व बताएं और ये भी बताएं की बुरे कर्मों से क्या हानि होती है।
चित्रगुप्त – सारी व्यवस्था की है महाराज! पहले से ही सारी व्यवस्था है। लेकिन आदमी कहता है, अरे इसमें मजा नहीं है। कथा सुनता है प्रसाद लेता है और फिर वही पुराना अपना काम। वो तो कहता है की अभी हमें मजा आ रहा है; अभी जिंदा है तो मजा ले लें। बाद में देखा जाएगा यमराज को भी टोपी पहना देंगे!
अच्छा !!!!! तो यूँ कहा नहीं की बुरे काम करने वालों को खौलते तेल में डाल दिया जाएगा ।
कहा था महाराज। हमारे सेवक सब इसी काम में लगे हैं। बताया था सेवक ने; लेकिन वे तो कहते हैं, की अभी हमें मजा लेने दो। बाद में यमराज जो मर्जी करें, जिसके साथ करें। हम तो वहाँ भी बच जाएंगे अपनी बुद्धि के बल से। और बाकी का यमराज चाहें पकौड़ा तले या ब्रैड पकोड़ा बनाएँ हमें नहीं मतलब यमराज़ जाने और उनका काम ।
अच्छा, तो तुम कहना चाह रहे हो की हमारा डर नहीं है लोगों में?
अरे महाराज डर होगा कैसे ! आज कल आप भी तो खूब ही रंगीला चैनल देख रहे हो हमें सब पता है। अब जब आप ही रंगीला चैनल देखोगे तो ! गुस्ताखी माफ़। गलती हो गयी। हम कुछ ज्यादा बोल गए। जी हुजूर बिलकुल माफ कर दीजिये।
तुम हम से कह रहे हो हम रंगीला चैनल देख रहे हैं और तुम; तुम जो नीचे जा जा के खूब मस्त रहते हो आज कल ये जो बार की बालाओं से खूब मस्ती छानते हो उसका क्या!!
और हमनें तुम्हें एक काम दिया था कितने समय से हमें वेबकूफ बना रहे हो। तुम्हारा तो खुद ही ध्यान अपने काम पे नहीं है और हमें बता रहे हो की सारी व्यवस्था चौपट है हमें क्या मालूम नहीं है कुछ भी ?
जी क्या कहे थे आप, हमें कुछ याद नहीं!
अच्छा देखो, तुम्हें कुछ भी याद नहीं?
नहीं हुजूर सच में, आप कुछ खुल के बताएं, सेवक भूल रहा है।
अरे हमने तुम्हें बहुत समय पहले एक काम दिया था की जरा धन की व्यवस्था देखो क्यू गरीब गरीब हो रहा है और अमीर अपना पैसा देस विदेश जाने कहाँ कहाँ जोड़ रहा हैं। वो तुम कुछ किए ???
अच्छा महाराज वो काला धन !!!
हाँ हाँ वही, क्या हुआ उस विषय में ?
पता नहीं महाराज, बहुत गड़बड़ है उसमें। नित नए रंग बदल रहा है। जो सत्ता में आ जाता है उसका धन काले से सफ़ेद होता जा रहा है, और विपक्षियों का सफ़ेद भी काला हो जा रहा है। हम तो बहुत परेशान हैं।
और महाराज, इस काले धन कि बीमारी से भी ज्यादा भयंकर रूप ले चुकी है एक महामारी। वो है अनैतिकता और अधर्म। किसी को धर्म और नैतिकता की कोई परवाह ही नहीं है। सांसरिक सुखों मे, एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगे है सब। धर्म से आए या अधर्म से, बस संपन्नता आनी चाहिए, वो भी पड़ोसी से, रिश्तेदार से ज्यादा।
“पर जो पहले से ही सर्व साधन सम्पन्न है, वो तो सब भले लोग हैं ना ?
“अरे महाराज, संपन्नता है पर संतोष कहाँ है। फिर उसके ऊपर दूसरे से तुलना। एक गाड़ी है तो दो चाहिए, दो है तो चार। दो कमरों का घर हे तो चार कमरों का चाहिए, चार का है तो आलीशान बंगला चाहिए। इच्छायेँ तो अनंत असीम हो गयी है न महाराज” चित्रगुप्त समझाने के अंदाज़ मे बोल रहे थे।
“तुमसे कुछ न होगा चित्रगुप्त, तुमसे कुछ न होगा”, यमराज गुस्से से लाल होकर चिल्लाये, “ हम अभी पृथ्वीलोक जायेंगे। देखना है की चित्रगुप्त की बातों मे कितना सत्य है और कितना मिथ्या।”
“सत्य और मिथ्या तो हम बताएंगे तुम्हें” !!!!!!!
श्रीमती जी की कर्कश आवाज़ कान में पड़ी तो पाण्डेय जी नींद से जागे।
“अब सपना देख लिए हो तो उठ जाओ। अब तुम हकीकत देखो, कल से तुम माँ बेटा घर में धमाल मचाए हो। हमने भैया को बुला लिया है ,हम जा रहीं हैं माएके। अब तुम माँ बेटा काला सफेद जो अच्छा लगे करते रहना।
“अरी भाग्यवान हमारा सपना तो सुनती जाओ”, पाण्डेय जी बोले।
अब सपना सुनाना अपनी अम्मा को, हम तो चले अपनी मम्मी के पास।
अरे सुनो तो, सुनो तो भाग्यवान, सुनती तो जाओ……………..

2 thoughts on “चित्रगुप्त की चिन्ता

  • विजय कुमार सिंघल

    आज की परिस्थिति में बहुत करारा व्यंग्य है! बधाई !

    • अंशु प्रधान

      उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद

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