गीतिका/ग़ज़ल

वृक्षों तले छाँव भी…

 

वृक्षों तले छाँव भी रह रहे किराये से, लगने लगे हैं
शहर में लोग कुछ ज्यादा ही पराये से ,लगने लगे है

मनुष्य होने के अलावा लोग न जाने क्या हो गए हैं
आडम्बर वे कुछ ज्यादा ही अपनाये से,लगने लगे हैं

बरसों पुराने मील के पत्थरों से अब कौन मिले
तन्हाई से घिरे रस्ते भी घबराये से ,लगने लगे हैं

जहाँ में सच कहने पर सजा ए मौत मिलती है
आईने के भीतर हम सुरक्षित साये से रहने लगे हैं

ढके चेहरों के भीतर कितना आतंक छुपा है कौन जाने
प्यार की जगह मानव, बम लगाए से ,लगने लगे हैं

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.