कविता

कविता

दर्द,अश्क,जख्म
समुद्र पहाड़
और सफीनो को
अपने स्याह दामन में
छुपाये बैठी हैं
बरसों बाद
खिज़ा का मिजाज़ और
मेरा हाले दिल
एक सा हैं
हमारा नगमा-ए-रंजोगम
और संगीत
एक सा हैं
छुपा हैं कोई
जलजला
इस घर की
बुनियाद में
उफ्फ ..!
आरजुओ की
कांपती लौ
लेकर
ए बाती
तुम कहा जाओगी …??
….रितु शर्मा ….

रितु शर्मा

नाम _रितु शर्मा सम्प्रति _शिक्षिका पता _हरिद्वार मन के भावो को उकेरना अच्छा लगता हैं

One thought on “कविता

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता .. !

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