सामाजिक

“मित्रता”

मित्रता एक ईश्वरीय देन है,जो दो समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के बीच स्वतः स्थापित हो जाती है।जाती,धर्म,रंग,रूप,एवं धन मित्रता के मार्ग में बाधक नहीं होते हैं।अगर ऐसा होता तो कृष्ण और सुदामा,राम और सुग्रीव आदि में मित्रता नहीं होती।मित्रता स्थापित होने के लिये दोनों के बीच खोटा स्वार्थ भी नहीं होना चाहिए।मित्रता तो हृदयों का गठबंधन है।
इजरायली ने कहा है —“मित्रता देवी है और मनुष्य के लिए मित्रता से अधिक कुछ नहीं और मनुष्य के लिए बहुमूल्य वरदान है।”
मित्रता की पहचान आपातकाल में होती है।जो मित्र दु:ख में तन मन और धन से साथ दे वही सच्चा मित्र है गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं —-“धीरज धर्म मित्र अरू नारी।
आपत काल परखिये चारी।।”
एक सच्चा मित्र दूध में मिले पानी की तरह होता है।इसी पर अंग्रेजी में एक प्रसिद्ध कहावत है —
“As friend in need is a friend indeed.”
इसलिए मित्रता ऐसे मनुष्य से करो जो तुमसे श्रेष्ठ हो।अतएव हमें सदा अच्छे मित्रों की खोज करनी चाहिए,क्यों कि –“सच्चा मित्र मिलना दैवी वरदान है”
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निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

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