कविता

कैसे कह दूँ…………….

कैसे कह दूँ

राम हुई सिर्फ गंगा मैली

जब हो चुकी

सभ्यता , संस्कृति, रिश्ते

सभी दूषित ….

अपने हुए अजनबी अनमने

पराये पिरोये अपनत्व के हार

नहीं खिलते

फूल वफ़ा के

मन की पगडंडियों पर

क्यों है हर ओर

भ्रम का जाल

क्यों है हर नज़र

गुमशुदा वीरानियों में

मिलते नहीं दिल से दिल

बस है छलावा

रिश्तों का जो ढोता है

हर शख्स आज के दौर में

फिर कैसे कह दूँ

प्यार अभी भी जिंदा है

प्यार अभी भी जिंदा है  ||(मीनाक्षी सुकुमारन )

 

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |

4 thoughts on “कैसे कह दूँ…………….

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

    • मीनाक्षी सुकुमारन

      tahe dil se behad shukriya

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता , आज सब कुछ मैला ही मैला लगता है , रिश्ते वोह रहे नहीं.

    • मीनाक्षी सुकुमारन

      behad behad shukriya aapka

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