भारतीय कालगणना सबसे प्राचीन
लखनऊ, 22/02/2015.
परकीय दासता के कारण हम अपने भारतीय स्वाभिमान, संस्कृति व परम्पराओं को भूल गये। हमारे आचार-विचार, व्यवहार और वेशभूषा भी उसी अनुरूप बदलते गये। ये बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लखनऊ के विभाग प्रचारक अमरनाथ ने कही। वे रविवार को ‘वंदेमातरम् आरोग्य मंच’ द्वारा ‘राष्ट्र निर्माण में बुद्धिजीवी समाज का कर्तव्य’ विषय पर आयोजित गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे.
उन्होंने कहा कि भारतीय कालगणना सबसे प्राचीन है। लेकिन यह देश का दुर्भाग्य है कि आजादी के कई दशक बीत जाने के बाद आज भी हम मानसिक गुलाम बने हुए हैं जिसे बदलने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि 1952 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. मेघनाद साहा की अध्यक्षता में भारतीय पंचांग सुधार समिति का गठन किया गया। यहां भी हम कूटनीति के शिकार हुए। शक संवत का राष्ट्रीय पंचांग के रूप में मान्यता दी गयी क्योंकि शक संवत ईसवी सन से बाद का है।
अमरनाथ ने कहा कि अंग्रेजी नववर्ष गुलामी का प्रतीक है। यह अंग्रेजों का नववर्ष हो सकता है भारत का नहीं। भारत का नववर्ष तो वर्ष प्रतिपदा से शुरू होता है जब प्रकृति भी अपनी अनुपम छठा बिखेरती है। विश्व का शक्तिशाली देश चीन अंग्रेजी नववर्ष नहीं बल्कि अपना नववर्ष मनाता है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विभाग प्रचारक ने कहा कि अगर भारत को सम्मानित व सामर्थ्यशाली राष्ट्र के रूप में उभारना है तो देश के अन्दर स्वाभिमान की ऊर्जा पैदा करना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यह काम विगत 90 वर्षों से कर रहा है।
‘वंदेमातरम् आरोग्य मंच’ के राहुल कुमार वर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि आज का युवा वर्ग पश्चिमी सभ्यता की ओर बढ़ रहा है यह भारतीय संस्कृति पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है। इस पर विचार करने तथा युवाओं को अपनी प्राचीन उपलब्धियों के बारे में बताने की जरूरत है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आलोक दीक्षित ने कहा कि जिस देश के लोग स्वस्थ रहते हैं वह देश बहुत जल्दी तरक्की करता है। उन्होंने कहा कि आरोग्य प्रदान करना ईश्वरीय कार्य है। इस कार्य में वंदेमातरम आरोग्य मंच लगा है।
गोष्ठी में ‘भारतीय नव वर्ष समिति’ के सदस्य मनोज मौन ने भी अपने विचार व्यक्त किये। गोष्ठी में आशुतोष सक्सेना, अनिल जायसवाल, नरेन्द्र कुमार, अभिषेक कुमार, राजेश, अमित, अनुराग, तेजभान, सत्यवान सिंह, रवी जायसवाल प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
सही बात है. हिन्दुओं के अधिकाँश त्यौहार हमारे विक्रमी संवत और उससे जुडी तिथियों के अनुसार ही मनाये जाते हैं, न कि तथाकथित राष्ट्रीय शक संवत के अनुसार. इसलिए अब समय आ गया है कि विक्रमी संवत को ही राष्ट्रीय संवत की मान्यता दी जाये.