कविता

यादें…

सुबह आती है,

शाम ढल जाती है,

पर तुम्हारी याद है,

कि जाती ही नहीं!

जितना भागती हूँ मैं,

तुम्हारी यादों से दूर,

और उतना ही करीब,

पाती हूँ अपने !

बडा अजीब है ये,

प्यार का खुमार ,

न जाने क्यों,

कैसे हो जाता है !

काश कि वक़्त की डोर ,

मेरे हाथ में होती,

तुम्हारी यादों को ,

वक़्त के साथ,

कैद कर देती !

ताउम्र के लिये उसी जगह,

जहाँ पहली बार तुम मिले !

हर मौसम आता चला गया,

और में वहीं की वहीं,

तुम्हारी यादों के साथ!

गर्मीयों की लम्बी,

वीरान दोपहरी,

आँखें खिडकी पर टकटकी लगाये हुये !

उमड -घुमड मेघ घिर आये,

ठंडी हवायें शूल सी ,

चुभ जाती,

लगता तुम्हारी यादों में,

खलल डाल रही हैं!

बारिश की बूँदों के साथ,

मन का गुबार भी बह निकला ,

पर यादें टस से मस न हुई !

सर्दियों की दोपहरी में हल्की-हल्की,

मीठी सी धूप के साथ ,

तुम्हारी यादें और सताने लगीं !

मन का पपीहा ,

भी टेरने लगा,

कोई इतना भी बेमुरब्बत,

कैसे हो सकता है!

हर एक मौसम आकर चला गया,

तुम नहीं आये !

तुम ऐसे जहाँ में क्यों चले गये,

कि वापस ही न आ सको !

तुम्हारी यादों को सहेजते-सहेजते,

मैं भूल गयी कि मैं तो एक जिस्म हूँ,

रूह तो तुम्हारे साथ ही चली गयी !

…राधा श्रोत्रिय “आशा”

 

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"