राधिका का रास में आगमन
बावली सी सांवली सी मोहिनी सी मूरति
कर रही है श्याम के मन प्रेम रस आपूर्ति
देवता भी देख हर्षित पुष्प वर्षा कर रहे
कामिनी के काम हरिहर बांसुरी से हर रहे
चन्द्र की भी शीतला है ग्रसित हरी के नेह से
झर झर बरसती मोह ना अब रह गया है देह से
पुष्प पल्लव माधुरी में कृष्ण की हैं खिल गए
आज कंपित हृदय हर्षित भंवर जैसे मिल गए
और नयनों में बसाए मिलन की नवआस ले
हृदय में गोपाल रखकर पुनः वो विश्वास ले
बढ़ रही है मद्धमा सी संग वायु वेग के
धन्य होते भाग्य खुलते मृदा के अरु रेग के
नेह से भरकर नयन जो चली मधुकर पास में
सर से लेकर पाँव तक जो मिलन के उल्लास में
नैन भीगे मन भी भीगे चरण रज के प्यार में
हृदय निश्छल देख हरिहर आये प्रेम अवतार में
आये प्रेम अवतार में,
आये प्रेम अवतार में!!
___सौरभ कुमार दुबे