कविता

राधिका का रास में आगमन

बावली सी सांवली सी मोहिनी सी मूरति

कर रही है श्याम के मन प्रेम रस आपूर्ति

देवता भी देख हर्षित पुष्प वर्षा कर रहे

कामिनी के काम हरिहर बांसुरी से हर रहे

चन्द्र की भी शीतला है ग्रसित हरी के नेह से

झर झर बरसती मोह ना अब रह गया है देह से

पुष्प पल्लव माधुरी में कृष्ण की हैं खिल गए

आज कंपित हृदय हर्षित भंवर जैसे मिल गए

और नयनों में बसाए मिलन की नवआस ले

हृदय में गोपाल रखकर पुनः वो विश्वास ले

बढ़ रही है मद्धमा सी संग वायु वेग के

धन्य होते भाग्य खुलते मृदा के अरु रेग के

नेह से भरकर नयन जो चली मधुकर पास में

सर से लेकर पाँव तक जो मिलन के उल्लास में

नैन भीगे मन भी भीगे चरण रज के प्यार में

हृदय निश्छल देख हरिहर आये प्रेम अवतार में

आये प्रेम अवतार में,

आये प्रेम अवतार में!!

___सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!