कविता

*सुबह-ए-शाम शान-ए-अवध गोमती*

जय गोमती का किनारा,

हो सुखकारी जयकारा |

सुबह की छनती लाली,

शाम -ए-अवध खुशहाली |

खतरों से खेल रही हैं ,

बचाने उतरे कुछ पाणी |

देवरहा-घाट पर लगी भीड़ भारी,

स्वेत जल धार चले ,

जीवन का उद्धार करे ,

सबने है ठानी ,

स्वच्छ रहे दु:ख दूर करे |

हे गोमती जय गोमती !

जय गोमती जय गोमती | 

©”मौन”

One thought on “*सुबह-ए-शाम शान-ए-अवध गोमती*

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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