सामाजिक

अग्निपरीक्षा कब तक?

ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ माँ सीता ने ही अपने आपको सच साबित करने के लिए अग्निपरीक्षा दी थी । यहाँ तो सभी नारियाँ हर कदम पर अग्निपरीक्षा देती हैं। आजादी का एक कदम उठाना भी उसके लिए दूभर हो गया है। यहाँ हर कदम पर रावण और दुःशासन खड़ा है। आज उसे बचाने के लिए कोई राम और कृष्ण आगे नहीं आ रहा है। इस भौतिकवादी युग में सब अपने तक ही सीमित रह गये हैं।

नारी के जीवन में लक्ष्मण रेखा तभी खींच दी जाती है जब वह 12 की अवस्था पार करती है। हालाँकि मुझे इससे कोई शिकायत नहीं है। रोज की घटनाओं को देखते हुए घरवाले ऐसा करने पर मजबूर हो गये हैं। नारियों की इज्जत और सम्मान ही हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति है। वह हमारे घर की शान होती है। उसकी एक नादानी से हमारे पूरे खानदान की इज्जत पर दाग लग सकता है। उसके कल्याण और परिवार के सम्मान के लिए उसे अच्छे संस्कार देना परम आवश्यक है।

लेकिन मुझे शिकायत इस बात से है कि ये संस्कार पुरुषों को क्यों नहीं दिये जाते ? उसे औरतों का सम्मान करना क्यों नहीं सिखाया जाता ? वह कुछ भी करे कोई प्रतिबंध नहीं। किसी भी घटना का जिम्मेदार नारी को ही ठहराया जाता है। आखिर समाज में नारियों की अग्निपरीक्षा कब खत्म होगी ?

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

2 thoughts on “अग्निपरीक्षा कब तक?

  • विजय कुमार सिंघल

    आपने जायज सवाल उठाये हैं. सभ्यता और संस्कार महिलाओं के साथ साथ पुरुषों को भी सिखाए जाने चाहिए.

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