सेवा करना कुत्ते का कार्य
किसी की भी सेवा करना मानवता की पहली निशानी होती है , किसी की सेवा करना
मानवता के नाते सबसे अच्छा कार्य माना गया है । पर मेरे ख्याल से ब्राह्मण ग्रन्थ मनुस्मृति एक मात्र ऐसा ग्रन्थ होगा जो सेवा करने को घृणा की नजर से देखता है , मनु महाराज कहते हैं ब्राह्मण को सेवा न करने के लिए कहते हैं की सेवा करना कुत्ते का काम होता है –
सेवा श्ववृत्तिराख्याता तस्मात्ता परिवर्जयेत् ( अध्याय 4, श्लोक 6)
अर्थात – सेवा करना कुत्ते की वृति होती है
मनु महाराज ब्राह्मण को सेवा करने से दूर रखते है और सेवा काम एक मात्र शुद्र दलित के जिम्मे सौंप के इसको धर्म सम्मत बना देते हैं , देखिये क्या कहते हैं –
एकमेव ही प्रभु: कर्म समदिशत।
एतेषामेव वर्णना शुश्रूषामनसुयया।।
अर्थात – शुद्र को चाहिए की वह ईर्षा, अभिमान, निंदा अदि छोड़ के ब्राह्मण, क्षत्रिय , वैश्य की सेवा करे ।
अच्छा, सेवा करवाने के लिए उसने शुद्र को दास बनाया और यह कहा की शुद्र चाहे ख़रीदा हुआ हो या न उसे दासता करनी ही पड़े गई ही –
शुद्र तु कारयेत् दास्य – अध्याय 8 , श्लोक 413
अर्थात शुद्र चाहे ख़रीदा हो या न उसे दासता ही करनी है ।
दुनिया के कई धर्म ऐसे रहे हैं जँहा गुलाम प्रथा रही है , पर उनमे मालिक गुलामो को यदि आज़ाद कर देता था तो वे गुलाम नहीं रहते थे ,वे सामान्य जीवन बिताते थे । पर मनु महाराज के अनुसार दास कभी आज़ाद नहीं हो सकता था , दासता उसका स्वभाविक धर्म है । वे कहते हैं-
निसगर्ज हि तत्तस्य कस्तस्मात्तदपोहति -( अध्याय 8, श्लोक 414)
अर्थात- दासता दास का स्वभाविक धर्म है , उससे उसे कौन विरत कर सकता है?
तो ,प्रश्न अब यह उठता है की क्या ऐसी पुस्तको को ‘ धर्म पुस्तक’ कहानी चाहिए जो मानवता का इतना अहित करे?
कुछ लोग आज भी मनुस्मृति के अनुसार ‘ हिन्दू राष्ट्रय’की कल्पना कर रहें हैं
– केशव
आप जाने किस मनुस्मृति को लेकर बैठे हैं! आपसे कहा था कि आर्य समाज द्वारा प्रकाशित शुद्ध मनुस्मृति का संन्दर्भ दिया कीजिये. पर आप अपनी ही धुन में मनमानी बातें लिखे जा रहे हैं जो किसी टिप्पणी के लायक भी नहीं हैं.