प्यार इसे ही तो कहते हैं….
तुमने मुझे देखा
जैसे देखा ही न हो
तुम्हारी आँखों में मेरी परछाई थी
तुमने मुझे सुना
जैसे सुना ही न हो
तुम्हारे कानों में मेरी आवाज गूंज रही थी
तुम मुझसे मिले
जैसे मिले ही न हो
मैं सरापा तुम्हारे मन में था
तुमने मुझे याद किया
जैसे याद किया ही न हो
तुम्हारी हर धड़कन मेरा नाम पुकार रही थी
तुमने मुझे चाहा
जैसे चाहा ही न हो
फूलों को ,पत्तों को ,
तितलियों को पर यह मालूम था
प्यार इसे ही तो कहते हैं
हम तो तेरे दीवाने है
सब सहते रहते हैं
किशोर कुमार खोरेन्द्र
खोरेंदर भाई , कविता अच्छी लगी.
dhnyvaad
पढ़ी !
thank u