गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका : रावण बसते गली- गली

सतयुग त्रेता मे इक रावण, कलियुग में रावण गली-गली,
बदल-बदल के भेष रोज, सीता को हरते गली गली ||१||

रंग रूप इनके अनेक, माया, छदम इनके स्वरूप
पहन सभ्य परिधानो को, ये नाटक करते गली-गली ||२||

सूनी सड़कों पर चलते हैं, रक्त -रक्त इनका गरल
डॅंक मारते ये विषधर, मानवता डसते गली-गली ||३||

कलुषित मानसिकता की कुंठा में, मन मे उमड़ता नित जहर
मानव की कहर वेदना बन, विभीषिका भरते गली-गली ||४||

मानवता खंडित करते हैं, धरती में मचती त्राहि- त्राहि
ऐसे रावण कलियुग मे आए, सीता को बचाते गली-गली ||५||

भेष बदल कर लूट रहे हैं, रिश्ते -नाते तोड़ रहे हैं
किस पर आज करूँ विश्वास, घर आँगन मे  बसते गली-गली ||६||

राज किशोर मिश्र ‘राज’

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

2 thoughts on “गीतिका : रावण बसते गली- गली

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी गीतिका !

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय जी आपकी पसंद एवम् हौसला अफजाई के लिए कोटिश आभार

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