कविता
रूह को अपनी यूं इतना बेचैन ना कर
कैद हैं जो मंजर बेवजह आँखो मे तेरी
फुर्सत मिले तो उन्हे आज़ाद तो कर
खुद की मेहनत से ढूंढ ले अब राहें
मंज़िल के लिए किस्मत को बदनाम ना कर
करती हैं सवाल कभी कभी तन्हाईयां भी खुद से
परछाई पे अपनी इतना ऐतवार तो कर
क्यूं उल्झता है सवालो के झंझाल मे इस तरह
आईने के सामने खुद से कभी मुलाकात तो कर
यूं तानो बानो मे ज़िन्दगी ना हो जाए खत्म
खुद को इतनी सज़ा ना दे यूं समय बर्बाद ना कर
— कामनी गुप्ता
वाह वाह !