मुक्तक =यथार्त व्यंग=कलमकार
[1]
दिल मे दर्द था क़लम सहारा बन गयी,
नुक्कत के हेर फेर मे बेवफा सी सज गयी ,
कलमकार का नज़रिया आज लाबींग जमाना हुआ,
बिनु दूल्हे बारात सजी, दुल्हन की विदाई हो गयी
[2]
भूल गये सच्ची बातें, अब गौरब किससे पाएँगे ,
लाबिन्ग और शगूफा का नव नुक्कत रोज पढ़ाएँगे,
गुमराह करेंगे कवि कविता अड़वन्गी बात बनाएँगे
सृजन अधूरा छोड़- गये वे ही कविवर कहलाएँगे
राज किशोर मिश्र ‘राज
बढ़िया !
आदरणीय आपकी पसंद एवम् त्वरित हार्दिक प्रतिक्रिया के लिए ह्दयतल से नमन और आभार
राज किशोर जी , आप तो कमाल कर देते हैं ,इतनी सुन्दर रचना कि चेहरे पर मुस्कराहट आ जाए ,बिनु दूल्हे बारात सजी, दुल्हन की विदाई हो गयी, हा हा किया बात है .
आदरणीय भमरा साहब सादर नमन , आपका आशीष मेरी कविता है नभाटा पर लीला बहन जी के ब्लॉग पर प्रतिक्रिया देने पर सदैव आपके विचारों से अवगत होता था यह मेरा सौभाग्य है जय विजय के ब्लॉग पर आदरणीय सिंघल साहब की छ्त्रछाया मे आमने-सामने प्रतिक्रिया से रूबरू हुआ हूँ / भाई साहब आपकी प्रतिक्रिया नव ओज प्रदायाणी है , आपके हौसला अफजाई के लिए आभार एवम् कोटि-कोटि अभिनन्दन
आदरणीय भमरा साहब सादर नमन , आपका आशीष मेरी कविता है