कविता

जीवन

समय  के पंख लगा पल पल यह जीवन अतीत में समा जाता है,
हमने क्या खोया  क्या पाया यही  विचार बस मन में रह जाता है,
पर समय की सदुप्योगिता  पर, किसका  कितना ध्यान जाता है,

समय की उपयोगिता पर,
मानवता के मूल्यों पर,
जीवन जो संयम मय हो,
जीवन जो सुखमय हो
जीवन जो निस्वार्थ हो,
जीवन जो  भावार्थ हो,
जीवन जो सम्माननार्थ हो,
जीवन जो सनातन हो,
जीवन जो नूतन हो,
वही सफल जीवन है,

हमें अपना जीवन आदर्शो के आधीन करना है,
अपनी मेहनत को अपनी
उपलब्धियों में परिवर्तित करना है,
प्रकृति में एक बीज से कई पुष्प बनते है,
एक पुष्प से फिर कई बीज बनते हैं,
यही विस्तार का जीवन है, इसे हमें सजाना है ,
समृद्धि और खुशहाली का जीवन हमें अपनाना है,

चंदा सूरज सब गृह और तारे,
सभी समय की परिधि में बंध कर
निरंतर गतिमान है…
करने को नव सृजन, निशा से प्रभात की और,
आगे बढ़ने में ही मनुष्य का सम्मान है,

समय प्रति पल परिवर्तित होता हुआ दौड़ रहा है,
अपनी लक्ष प्राप्ति के लिए सबको पीछे छोड़ रहा है.,

यह जीवन भी ‘समय’ की प्रतियोगिता है,
वही सफल है जिसके जीवन में—
समय की सदुप्योगिता है,

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

2 thoughts on “जीवन

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

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