कविता

कविता : जाने वाला

जाने वाला चला जाता
पीछे छोड़ जाता
एक लंबी खामोशी
एक खालीपन
एक खलाह
एक दरिया
एक औरत के दिल में ही नही
बल्कि हर उस इंसान की ज़िंदगी में
जो हैं जुड़ा उसके साथ
जी रहा उसके साथ
जाने वाला ले जाता हैं
साथ अपने
वो रंग
वो खुशियाँ
वो मुस्कान
वो जीने का ज़ज्बा
एक औरत की रूह में से ही नही
बल्कि हर उस इंसान की ज़िंदगी में से
जो मुस्कुरा रहा था उसके साथ
जो जी रहा था उसकी ज़िंदगी
जो खुश होता था उसकी खुशी में
जो रंग भर रहा था उसके दिए रंगो से
जाने वाला दे जाता हैं
अपनी यादे
अपने उसूल
अपने लफ्ज़
अपनी विरासत
और कभी कभी दे जाता हैं
एक ऐसा गुरबत का पहाड़
जिसको पार करने के लिए
ज़िन्दगी खत्म हो जाती हैं
सिर्फ उस औरत की ही नही
बल्कि उस सारे परिवार की
जो विचरता हैं इस समाज में
जाने वाले की इज्जत को बरकरार रखते
पता नही क्या क्या समझौते करते
वो बिता देते हैं अपनी ज़िन्दगी
कहना-लिखना-सुनना
शायद बड़ा आसान
सहना बड़ा मुश्किल
हे प्रभु !
किसी औलाद के सर से
उसके माता पिता का साया मत छिनना
बख्श हौसला
उन परिवारों को
जो खो चुके
अपने अपनों को …!!
*****रितु शर्मा ****

रितु शर्मा

नाम _रितु शर्मा सम्प्रति _शिक्षिका पता _हरिद्वार मन के भावो को उकेरना अच्छा लगता हैं

One thought on “कविता : जाने वाला

Comments are closed.