कविता

कहां खो गया कल

कहां खो गया हमारा
वो बीता हसीं कल
वो साथ बिताये हुए
कुछ प्यार भरे पल
वो लम्हें जिनमे हम साथ थे
ज़रा सी नजदीकियां
और प्यार भरे अहसास थे
क्यों हम एक दूजे से
यूं इतना दूर हुए !
क्यों हम ज़माने के आगे
इस कदर मजबूर हुए !
क्यों हम हार गये
ज़ुल्म-ओ-सितम के आगे !
क्या इतने कच्चे थे
हमारे प्रेम के धागे !
क्यों हम दुनियां का
सामना न कर पाये !
क्यों ये झूठे रीत रिवाज़
हम न तोड़ पाये !
आज भी टूट सकते है
ये रस्म-ओ-रिवाज़ सारे
आज भी हो सकते है हम
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे
मगर………
क्या फिर वो ज़माना
लौट सकता है !
क्या फिर वो वक्त सुहाना
लौट सकता है !
क्या फिर आ सकते हैं
साथ बिताये वो पल !
क्या फिर आ सकता है
गुजरा हुआ हंसी वो कल !
क्या फिर तुम मेरे पहलू में
उसी तरह खो जाओगे !
क्या फिर तुम मुझे अपनी
बाहों में सुला के सो जाओगे !
क्या अब भी दीवानों जैसी
मोह्हबत है तुम्हें मुझसे !
क्या अब भी वही ऐतबार है
तुम्हे मुझपे ….!
डर लगता है शीशे के ख्वाब मेरे
कहीं फिर टूट न जायें
कहीं फिर गमों की आँधियाँ
मेरी आशा की लौ न बुझायें
कहीं फिर कोई मेरी राहों में
स्याह अँधेरे न बिखराये ।
— प्रिया वच्छानी

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - priyavachhani26@gmail.com

2 thoughts on “कहां खो गया कल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत सुन्दर रचना .

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