कविता

फैशन चालीसा

दोहा-

चहुँ दिश फैला जिस तरह, अब फैशन का राज।
उसको वैसा ही लिखूँ, मन में आया आज॥
लेकिन डरता सोचके, कुपित न होंवे भक्त।
सत्य किसे होता हजम, खौल न जाए रक्त॥

चौपाई-
नमो-नमो हे फैशन देवा।
सब मिल करते तेरी सेवा॥
बालक-वृद्ध-युवा-नर-नारी।
आते हैं सब शरण तुम्हारी॥
ब्यूटी पार्लर बने विशाला।
जहाँ अनेकोँ मिलतीँ बाला॥
उनकी शोभा मोहे मन को।
सुंदर जवां करें जो तन को॥
जिनको देख अनंग लजाएँ।
सुंदरता लख चुप हो जाएँ॥
तरह-तरह के बाल कटातीँ।
छोटे-घुँघराले करवातीँ॥
कई रखे हैं अलकेँ ऐसे।
पूँछ अजा की होती जैसे॥
हर पल हाथ चलाएँ उन पर।
खुशबू का डेरा है जिन पर॥
सौ में दस के लंबे केशा।
उनको भी है बहुत क्लेशा॥
श्याम-लाल जुल्फे करवातीँ।
अपनी भौँहेँ स्वयं बनातीं॥
विविध क्रीम का मुख पर लेपन।
भूल गया नैनों का अंजन॥
अधरोँ पर सतरंगी लाली।
कान अनेकोँ पहनें बाली॥
किंतु नासिका दिखती खाली।
सुरसा सी लंबे नख वाली॥
खोई पायल की झनकारेँ।
जैसे छोड़े नदी किनारेँ॥
कितने अलबेले पहनावे।
साड़ी-चुन्नी उन्हें न भावे॥
गलीँ मोम जैसे आस्तीनेँ।
पैर हो गए बड़े कमीने॥
आँखों में हैं चश्मे काले।
और पहनती ऊँची हीले॥
पर्स टाँग लेती हैं ऐसे।
काँख सुदामा तंदुल जैसे॥
कर मोबाइल,कुशल चालिका।
भोजन-नीर न भाता घर का॥
दंत हीन मुख से बतियाती।
जिनके हैं पोतों के नाती॥
वो भी बनतीँ हेमा-रानी।
पुरुषों की अब सुनो कहानी॥
केश बड़े नर कटवाते हैं।
फिर सीधी मांग बनाते हैं॥
बाला सी चोटी रखते हैं।
क्रीम कई मुख पर मलते हैं॥
नित अपनी मूँछ बनाते हैं।
ज्यों ऊसर धरा दिखाते हैं॥
पोशाक कड़ी सिलवाएँगे।
नर्तक सी कमर हिलाएँगे॥
शर्ट पहनते नीली-काली।
पैँट बैंक है लेकिन खाली॥
अति महँगा परफ्यूम डालते।
मूल्यवान ये बेल्ट बाँधते॥
जूते पहने बड़े कीमती।
घड़ी सुनहरी हाथ मचलती॥
रिस्ट रिबन हैं रंग-बिरंगे।
उपनेत्र लगा मचाते दंगे॥
ये बाइक अति तेज चलाएं।
विधुवदनी लख गीत सुनाएं॥
हर वक्त मोबाइल बजाएं।
अरु गाली देकर बतियाएं॥
गर्ल फ्रेंड की करते चाहत।
बिन बतियाए मिले न राहत॥
बातों में ही गुजरे रातेँ।
गुटबंदी में गुटखा खातेँ॥
बियरबार में मिलकर जाएँ।
सिगरेट पिएँ,जाम लड़ाएँ॥
छोड़ पढ़ाई पिक्चर जाएँ।
ठंडा-चाट-समोसे खाएँ॥
नवनिहाल भी नहीं अछूते।
चाउमीन खा दूध न छूते॥
खोई गुड़िया की बारातेँ।
फिल्मों की अब करते बातें॥
वृद्धों की भी बदली रंगत।
तरुणों की अब करते संगत॥
राजनीति में लेते हिस्सा।
और सुनाएँ वलगर किस्सा॥
सब मिल मुझको दो आशीषा।
सफल बने फैशन चालीसा॥
दोहा-
‘पूतू’ जो देखा-सुना, बात कह गया साफ।
अगर हुई हैं गलतियाँ, आप करेंगे माफ॥

(समाप्त)

पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’

पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'

स्नातकोत्तर (हिंदी साहित्य स्वर्ण पदक सहित),यू.जी.सी.नेट (पाँच बार) जन्मतिथि-03/07/1991 विशिष्ट पहचान -शत प्रतिशत विकलांग संप्रति-असिस्टेँट प्रोफेसर (हिंदी विभाग,जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकूट,उत्तर प्रदेश) रुचियाँ-लेखन एवं पठन भाषा ज्ञान-हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी,उर्दू। रचनाएँ-अंतर्मन (संयुक्त काव्य संग्रह),समकालीन दोहा कोश में दोहे शामिल,किरनां दा कबीला (पंजाबी संयुक्त काव्य संग्रह),कविता अनवरत-1(संयुक्त काव्य संग्रह),यशधारा(संयुक्त काव्य संग्रह)में रचनाएँ शामिल। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। संपर्क- ग्राम-टीसी,पोस्ट-हसवा,जिला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)-212645 मो.-08604112963 ई.मेल-putupiyush@gmail.com

2 thoughts on “फैशन चालीसा

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    आदरणीय सुंदर भाव लाजवाब सृजन जय माँ शारदे

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया व्यंग्य रचना।

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