कविता

संग तुम्हारे

उम्र की झोली से आज,
कुछ हसीन लम्हें,
चुरा लिये हमने !
तोड जमाने के बंधन सारे,
संग तुम्हारे कुछ ख्बाब ,
बुन लिये हमने !
अंबर की पाक गागर से,
बादल का एक टुकडा,
ले लिया हमने !
बैठकर चाँदनी की छाँव तले,
मोहब्बत के जाम घूँट -घूँट,
पी लिये हमने !
निकल आये दूर, दुनीयाँ से हम​,
संग तुम्हारे ,कुछ हसीन लम्हे,
जी लिये हमने !
वक़्त की सलाईयों पर बुने,
सपनो से ,एक सिरा आज ,
फाड लिया हमने !
मोहब्बत पर मज़हब के,
न रहें पहरे,राम रहीम नाम ,
लिख लिये हमने !
जीने -मरने का फ़र्क”आशा”मिट जाये,
जीवन के सारे लम्हें संग तुम्हारे,
लिख लिये हमने !

— राधा श्रोत्रिय​ “आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

One thought on “संग तुम्हारे

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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