कविता

“पता, मेरे गाँव का”

क्यों पूछते हो मेरे गाँव का पता

माफ करना गर हुयी कोई खता ||

 

अदब से रहता हूँ इसी इलाके में

ऐसे विचार नहीं ठहरूं ठहाके में

कहाँ आप और कहाँ यह खँडहर

जमीन पे खड़ी है खुदके फिराके में ||

 

कुछ दूर जाकर सड़क से मुडती है सड़क

फिर कई मोड मुड खुद सरकती है सड़क

रुकिए, प्रवेष द्वार सुन्दर सा मोड है

बाग को रंग दिखाकर मुडती है सड़क ||

 

सतरंज सी सीधी चाल जब मिलने लगे

दायें बाएं खुदवखुद हर शय चलने लगे

झुक जाय सर बजरंगबली की देहरी पर

सामने है गाँव दिल-जान पिघलने लगे ||

 

यही सड़क पंचायत भवन से जुडती है

सुबह-शाम जहाँ गलियां आ मिलती हैं

तर्क बेलगाम सा हों जाता है जनाब

पूछना तनिक, मेरी गली क्या कहती है ||

 

पधारिये सुजान, बाबा के मचान तक

वटवृक्ष की छैयां में, पहचान तक

रुपये की अठन्नी चवन्नी तो देखिये

मधुबनी, कुल गौतम के प्रसाद तक ||

 

ज्ञान और पांडित्य कुल की गरिमा है

संस्कार धरोहर बाकी माँ की महिमा है

कुलगुरू है हम, बलशाली क्षत्रियों के

चौहद्दी कहती हैं गुण इनका क्षमा है ||

महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

4 thoughts on ““पता, मेरे गाँव का”

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद प्रिय रमेश जी रचना ने आप को आकर्षित किया, मेरा मनोबल बढ़ा…….

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता अच्छी लगी.

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद श्री गुरमेल सिंह जी, रचना आप को पसंद आयी मुझे बहुत ख़ुशी मिली, इसी तरह मेरे प्रेरणास्रोत बने रहे मान्यवर……

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