उदासी और उबासी दोनों ही कठोर है- मौन
जिन्दगी की पुकार को सुनता हूँ तो
ऐसा लगता है जैसे जमाने में कुछ है ही नहीं
उदासी और उबासी दोनों ही कठोर है
मौन इसके पार एक जहां तलाशता हूँ।
कोई परेशान है पर मस्त है
कोई उदासी से ही त्रस्त है
जुगत जिन्दगी को चलाने की
मौन बड़ी ही दूर से निहारता हूँ।
वाह वाह !!
बहुत बढिया .