कविता

बेटियाँ

हर घरों की जान सी होती हैं बेटियाँ

कुल की कूलिनता पर सोती हैं बेटियाँ

माँ की कोंख पावन करती हैं बेटियाँ

आँगन में मुस्कान सी होती हैं बेटियाँ ||

 

अपनी गली सिसककर रोती हैं बेटियाँ

सौदा नहीं! बाजार में बिकती हैं बेटियाँ

तानों की बौछार भी सहती हैं बेटियाँ

खुद कलेजा थामकर चलती हैं बेटियाँ ||

 

बाप की औलाद ही होती हैं बेटियाँ

गर्भ में इन्शान को ढोती है बेटियाँ

कलाई थाम भाई की रोती हैं बेटियाँ

हवस तेरा शिकार बन जाती हैं बेटियाँ ||

 

इज्जत के पहरेदार! लुट जाती है बेटियाँ

नंगे बदन अखबार छप जाती है बेटियाँ

पता बता, किस घर नहीं होती हैं बेटियाँ

अभागों के दरबार मर जाती हैं बेटियाँ ||

 

माँ-बहन बन संसार भी रचती हैं बेटियाँ

सुहागन का श्रृंगार भी करती हैं बेटियाँ

सिंदूर की ज्वाला में जलती हैं बेटियाँ

धिक्कार है! बेकफन भी टंगती हैं बेटियाँ ||

 

महातम मिश्र

 

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

7 thoughts on “बेटियाँ

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मिश्र जी , बेतिओं के बारे में जो कुछ लिखा है ,बिलकुल सही है.

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीय गुरमेल सिंह जी

  • विजय कुमार सिंघल

    कृपया अपना स्पष्ट चित्र भेज दें या लगायें.

    • महातम मिश्र

      जरुर श्री विजय जी, आज ही चित्र प्रस्तुत हों जायेगा, आभार……

    • महातम मिश्र

      नया चित्र लगा दिया मान्यवर विजय जी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर !

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद श्री विजय कुमार सिंघल जी

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