बाल कहानी

नन्हा सैनिक

चारों ओर से धमाकों की आवाज़ आ रही थी I ऐसा लग रहा था मानो दीपावली हो, पर यह पटाखों की नहीं बल्कि हथगोलों और बंदूकों की आवाज़े थी I सन्नाटे को चीरती जब किसी जवान की बन्दूक चलने की आवाज़ आती तो मानों पनघट और चौबारे भी थरथरा उठते I इन्ही के बीच दस वर्षीय नन्हा बालक टीपू अपनी बूढी और अंधी दादी से चिपक कर सोने की कोशिश कर रहा था I दहशत और मौत का भय उसकी आँखों में साफ़ नज़र आ रहा था क्योंकि वह जानता था कि उसकी झोपडी किसी भी पल किसी हथगोले का निशाना बन सकती है I हर दूसरे दिन वह गाँव के किसी आदमी को बिना किसी अपराध के मौत के मुहँ मैं जाता देखता और उसके पीछे रोते बिलखते परिवार रह जाते I जब कभी बमबारी नहीं हो रही होती , तो वह चैन से अपनी दादी के साथ सोता, पर यह सुकून भरी नींद उसे बहुत कम ही नसीब हो पाती थी I एक दिन टीपू रोज की तरह दादी की खाना बनाने में मदद कर रहा था क्योंकि दादी को सामान टटोल कर इकठ्ठा करने में बहुत समय लग जाता था I तभी दादी ने कहा-” टीपू, मुझे यह लकड़ियाँ कुछ सीली मालूम पड़ रही हैं, जरा पास में ही जाकर कुछ सूखी टहनियां ले आना और दूर बिलकुल मत जाना I ” टीपू यह सुनकर बहुत खुश हो गया , क्योंकि  दादी उसे झोपड़ी से बाहर जाने ही नहीं देती थी I उनकी झोपड़ी सीमा के नज़दीक थी,इसलिए कब बमबारी हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता था I उसने इन्ही नफरतों की आंधी के चलते अपना भरा पूरा परिवार खो दिया था , और अब वह टीपू को किसी कीमत पर नहीं खोना चाहती थी I टीपू झोपड़ी के पीछे की ओर जाकर टहनियां ढूँढने लगा तो उसे झाड़ियों में कुछ हलचल सी लगी I वह उस ओर बढ़ा तो उसने देखा कि एक घायल सैनिक पड़ा हुआ था  I उसकी वर्दी जगह जगह से फटी हुई थी और उसके घावों से खून बह रहा था Iबाल बिलकुल रूखे और चेहरे पर मिट्टी की परत जमी हुई थी I एक पल को तो वह उस सैनिक काडरावना रूप देखकर डर गया, पर दूसरे ही पल उसे अपने पिताजी की याद आ गई , जो उसे हमेशा हिम्मत और बहादुरी से काम करने के लिए कहते I वह थोड़ा और आगे बढ़ा और गौर से सैनिक को देखने लगा I लहुलुहान चेहरा,अधखुली आँखें और सूखे पपड़ी भरे होंठ,वह दर्द से रह रहकर  कराह रहा था I ऐसा लग रहा था मानो उसे कई दिन से भोजन और पानी भी नहीं मिला हो I तभी सैनिक ने धीरे से अपनी आँखें खोली और टीपू की ओर आशा भरी नज़रों से देखकर बोला -” पानी…”
टीपू ने इधर उधर देखा, फिर दौड़कर अपनी झोपडी से एक बर्तन में पानी ले आया I उसने सैनिक को जैसे तैसे सहारा देकर उठाया और पानी का बर्तन उसके मुहँ से लगा दिया I सैनिक एक ही साँस में सार पानी गटागट पी गया I पानी पीकर जैसे उसके भीतर नए प्राणोंका संचार हो गया I उसकी आँखों में चमक आ गई I.टीपू को यह देखकर बहुत अच्छा लगा I.उसने पुछा -” तुम कहाँ  से आये हो ?”
सैनिक ने यह सुनकर एक फीकी मुस्कान के साथ टीपू को देखा और चुप हो गया I
टीपू ने कहा -” वो देखो, सामने मेरी झोपड़ी हैं I वहाँ  पहुंचकर  तुम्हें खाना भी मिलेगा I.”
सैनिक ने यह सुनकर टीपू का नन्हा हाथ थाम लिया और बड़ी ही मुश्किल से लगभग घिसटते  हुए किसी तरह झोपड़ी तक पहुँच गया I
अपनी दादी को सैनिक के बारे में बताता हुआ टीपू बोला- ” दादी, इनके  घावों से बहुत खून बह रहा है I.”
दादी एक दयालु और अनुभवी महिला थी Iउन्होंने तुरंत जड़ी बूटियों का काढ़ा बनाकर उसे पिलाया और हल्दी का लेप उसके घावों पर लगा दिया I फिर उसने जल्दी  से खाना बनाकर दाल भात सैनिक को बड़े प्यार के साथ परोसा I.
सैनिक खाने पर भूखे  शेर की भाँती टूट पड़ा और देखते ही देखते उसने चावल का आखरी दाना तक चाट कर डाला I उसकी आँखों में असीम तृप्ति का एहसास था और उसका रोम रोम टीपू और उसकी दादी के लिए कृतज्ञ था I पर अगले ही पल वह शर्मिंदा होते हुए बोला -” तीन दिन से मैंने अन्न का दाना भी नहीं खाया था इसलिए खाते समय होश ही नहीं रहा कि आप लोगो लिए कुछ बचा ही नहीं हैं I”
यह सुनकर दादी प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली-” तुमसे मिलकर मुझे मेरे बेटे की याद आ गई और अगर  बेटा पेट भर के भोजन कर ले तो माँ का पेट तो क्या आत्मा तक तृप्त हो जाती है I.”
यह  सुनकर सैनिक की आँखें भर आई I कुछ ही दिनों में सैनिक चलने फिरने लायक हो गया I टीपू उससे तरह तरह के प्रश्न पूछता रहता, कभी जंग के बारे में तो कभी फ़ौज के बारे में I एक दिन टीपू ने उसकी वर्दी पर हाथ फेरकर पूछा ” अच्छा, तो हमारे देश के सैनिक क्या इसी तरह की वर्दी पहनते है ?”
यह सुनकर सैनिक कुछ नहीं बोला और उसें प्यार से गले लगा लिया I सैनिक ने थोड़ी देर बाद पुछा =” तुम्हारे माँ और पिताजी कहाँ हैं ?”
यह सुनकर टीपू का गोरा मुहँ गुस्से से लाल  हो गया और वह आसमान की ओर इशारा करके बोला ” दादी कहती हैं कि सीमा पार से किसी फौजी ने हमारी झोपड़ी के पास ताबड़तोड़ फायरिंग की थी, जिससे मेरे माँ ओर पिताजी भगवान के पास चले गए I जब मैं  बड़ा होकर फ़ौज में भर्ती होऊंगा तो उसको भी बन्दूक से मार दूँगा I”
यह सुनकर सैनिक के पैरों तले जमीन खिसक गई I उसे वह मनहूस शाम याद आ गई जब उसने दुश्मनों का जिक्र आते ही गुस्से में फायरिंग शुरू कर  दी थी और उसे बाद में पता चला था कि एक पति पत्नी की उसी में मौत हो गई थी I  अब  उसके समझ में आया कि वे दोनों टीपू के ही माँ बाप थे I उसका  हृदय चीत्कार कर  उठा I  जो बच्चा उसे मौत के मुहं से बचाकर लाया था उसने उसे ही अनाथ बना दिया था I वह जैसे पत्थर काबन गया I  बहुत  देर तक वह बिना हिले डुले वैसे ही बैठा रहा पर उसकी आँखों से लगातार आँसूं बह रहे थे  I वह अपनी सेना में ” मेजर ” था और अब तक ना जाने कितने ही युद्ध देख चुका था , कितनी ही लाशें उसके सामने से गुजरी थी पर उसके आँखें कभी नम  नहीं हुई थी I   आज वह जोर- जोर से बच्चों की तरह सिसकारी भरकर रो रहा था I  वह अपने ऊपर बहुत लज्जित था कि उसने सीमा पार की हर औरत और मासूम बच्चों की जान को कैसे  अपनी माँ और बच्चों की जान नहीं समझा I क्यों उनमें उसे अपने परिवार वालों की झलक नहीं दिखाई दी I  सुबह  को काम पर जाता,हँसता- मुस्कुराता आदमी जब अपने घर नहीं लौटा होगा तो उसके रोते बिलखते परिवारवाले उसे कभी क्यों नहीं दिखे I
उसे इस तरह रोता देख टीपू दौड़कर अपनी दादी को बुला लाया I
दादी उसे बड़े ही प्यार से चुप करने लगी तो वह बोल ” माँ, तुमने मेरी इतनी सेवा की पर  कभी मुझसे मेरा नाम तक नहीं पूछा I यह भी जानने  की कोशिश नहीं की कि मैं हिन्दू हूँ या मुसलमान ?”
यह सुनकर दादी अपने आँसुओं को आँचल से पोंछते हुए बोली-” बेटा, मैं नहीं  जानती कि राम कौन हैं और कौन रहीम I मुझे तो केवल मेरे मेहमान की चिंता हैं कि कही उसकी सेवा करने में  मुझसे कही कोई कमी ना रह जाए I.”
यह सुनकर मेजर सन्न रह गया  I तभी उसने देखा कि उसके  सैनिकों की एक टुकड़ी उस ओर बढ़ी आ रही है I…………………सैनिकों को लगा कि  झोपड़ी के अन्दर और भी कई लोग हैं, जिन्होंने मेजर को बंदी बनाकर रखा हुआ है I
उनमे से एक ने दादी की ओर निशाना साधकर बंदूक चला दी I  मेजर  यह देखकर हवा की गति से उनके सामने आ गया  I गोली सनसनाते हुई सीधे जाकर उसके पेट में लगी I बौखलाए  हुए सैनिक यह देखकर दौड़ते हुए उसके पास आ गए I टीपू  मेजर के गले लगकर जोर जोर से रोने लगा  I
मेजर ने प्यार से उसे चूमा, एक लम्बी सिसकारी भरी और दादी के चरणों  में अपना सर रखकर बोला-” मैंने नमक का क़र्ज़ अदा कर  दिया माँ….हो सके तो मुझे माफ़ कर देना I  “
और यह कहकर मेजर शान्ति से सो गया हमेशा-हमेशा के लिए ………
डॉ. मंजरी शुक्ल

One thought on “नन्हा सैनिक

  • विजय कुमार सिंघल

    कहानी अच्छी है। लेकिन इसके शीर्षक का औचित्य समझ में नहीं आया।

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