कविता

किस्मत लिखने की कलम

काश ! किस्मत लिखने की भी कलम कोई रहती,
अपनी हाथ से मैं मनचाही किस्मत लिखती।

प्यार का सागर लिखती खुशियों का आसमान,
तब पूरा होते हमारे सभी ख्वाब और अरमान।

मंजिल की राह के काँटों को हटा देती कलम से,
एक ही बार में मंजिल तक नाप लेती कदम से।

धरती से भी अधिक लिखती धैर्य और सहनशक्ति,
पंछी से अधिक होती हौसले की उड़ान की गति।

दीपक जैसा अंधेरा चीरकर देती ज्ञान प्रकाश,
मेरे चमन की खुशबू से रौनक होता जमीं आकाश।

दीन-दुखियों को तन-मन-धन से बनती सच्चा साथी,
इतिहास के पृष्ठों पर अपना स्वर्णाक्षरों में नाम लिख जाती।

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

4 thoughts on “किस्मत लिखने की कलम

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सुन्दर रचना .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

  • डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

    सुन्दर भाव धारा

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