सामाजिक

ऐसी कुर्बानी पे, हाय मैं मर जावां

“अरे सुनते हो, थोड़ा –सा जहर मुन्ने को दे दो, वही दो मिनट वाला.”

“हां डार्लिंग, बिग बी वाला न, अभी देता हूं, टेंशन क्यों लेती हो, मैं हूं ना.”

“हां तुम भी जरा, अपने गुलाबी होंठों पर जहर लगा लेती तो अच्छा रहेगा.”

“वही तो कर रही हूं, वर्ना मैं खुद ही अपने लाडले को जहर नहीं दे देती क्या ? इत्ती निठल्ली नहीं हूं मैं, हां नहीं तो.”

“अरे डार्लिंग बुरा तो मत मानो, क्या मजाक भी नहीं कर सकता हूं मैं ?”

“ऐसी टान्टिंग मुझे पसन्द नहीं है.”

शायद आपको पता होगा कि वैज्ञानिकों को यह ज्ञात नहीं है कि लेड यानी सीसे की वह सूक्ष्मतम मात्रा कितनी है जो मानव शरीर को नुक्सान नहीं पहुंचाती हो. अर्थात् सीसे की न्यूनतम मात्रा भी जहर का काम करती है और न जाने क्यों वैज्ञानिक हर तरह के खाद्य पदार्थों में लेड की एक न्यूनतम पर्मिसिबल मात्रा तय कर डालते हैं.

परिणाम यह होता है कि मां अपने ही बच्चों के लिए पूतना राक्षसी हो जाती है और पत्नियां लेड युक्त लिपस्टिक लगाकर अपने पति के लिए विषकन्या सिद्ध होने लगती हैं (स्वयं भी बेचारियां जहर लेती हैं).