मुक्तक/दोहा

दो मुक्तक

भ्रांतियों में जी रहा है आदमी

जहर को यूँ पी रहा है आदमी

फंस गया पाखंडियों के जाल में

झूठ का क़ैदी रहा है आदमी

 

सत्य का पालक यहाँ कोई नहीं

न्याय संरक्षक रहा कोई नहीं

आम जन है भटकता संसार में

मार्गदर्शक मिल रहा कोई नहीं

 

— विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com

14 thoughts on “दो मुक्तक

  • गुंजन अग्रवाल

    bahut sundar muktak bhaiya

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, गुंजन. (अब ‘जी’ नहीं लगाऊंगा तुम्हारे लिए.)

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह आदरणीय बहुत की लाजवाब मुक्तक सामांत एवम् पदांत का काबीले तारीफ निर्वहन के लिए आभार

    • विजय कुमार सिंघल

      हृदय से आभार, बंधु ! मुझे डर था कि छंद गलत न हो गया हो।

  • कामनी गुप्ता

    बहुत खूब सरजी…

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, कामनी जी।

  • प्रीति दक्ष

    फंस गया पाखंडियों के जाल में

    झूठ का क़ैदी रहा है आदमी

    wahh bahot khoob.. vijay ji mujhe bhi muktak likhna seekhna hai ..

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार। मुक्तक लिखना कोई कठिन कार्य नहीं है। बस छंद और तुकांत का ध्यान रखना पडंता है। सभी पंक्तियाँ समान लम्बाई की होनी चाहिए और तीसरी के अलावा सभी का तुकांत समान होना चाहिए।
      आप कोशिश कीजिए। कोई कमी होगी तो मैं सुधार दूँगा।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , मुक्तक बहुत अछे लगे ,
    सत्य का पालक यहाँ कोई नहीं
    न्याय संरक्षक रहा कोई नहीं
    आम जन है भटकता संसार में
    मार्गदर्शक मिल रहा कोई नहीं , बहुत सही लिखा .

    • विजय कुमार सिंघल

      बहुत बहुत धन्यवाद, भाई साहब ! बस आज अचानक एक विचार आया और लिख दिया। मुझे प्रसन्नता है कि आप सबको पसंद आया।

  • मनमोहन कुमार आर्य

    अति श्रेष्ठ, प्रशंसनीय एवं यथार्थ स्थिति व्यक्त करने वाले मुक्तक। यह इतने अच्छे लगे कि मैं अपनी प्रसन्नता को शब्द नहीं दे पा रहा हूँ। यदि हो सके तो कभी ईश्वर, जीव व प्रकृति पर एक, दो या तीन मुक्तक, कविता व दोहें आदि प्रस्तुत करें। हार्दिक धन्यवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम मान्यवर ! आभारी हूँ आपका।
      आपके आदेशानुसार कुछ लिखने का प्रयास करूँगा।

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, बन्धु !

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