लघुकथा

प्रेम का कर्ज़

pyar ka karz

सुशीला बैंक में नौकरी करती है, उसके पति भी अच्छी नौकरी में हैं । दोनों ने बड़ी मेहनत और मुश्किलों से घर गृहस्थी को संभाला और बढ़ाया। परिवार से लेकर नौकरी तक तमाम संघर्ष किये मगर कभी टूटा हुआ महसूस नहीं किया। जब भी दोनों में से किसी एक को भी लगता कि दूसरा थक रहा है, ज़िन्दगी की दौड़ में कमजोर पड़ रहा है, तो तुरंत दूसरा आगे बढ़कर उसका मनोबल बढ़ाता। इसी उधेड़बुन में तीस साल निकल गए विवाह के, लेकिन मन में सुकून था कि उनके बच्चे अच्छी तरह सेटल हो गए। बेटी अच्छा कमा रही थी और खुशकिस्मती से उसका विवाह भी अच्छे घर में हो गया था। छोटा बेटा कनाडा चला गया था सर्जन हो गया था वहीं।

सुशीला को कभी कभी बहुत बुरा लगता, लेकिन सोचती कि वही तो चाहती थी कि उसका बेटा बहुत बड़ा आदमी बने और विदेश में सेटल हो। दुनियाँ देखे कि उसके बच्चे कितने लायक हैं। लेकिन आज सुशीला का मन अंदर ही अंदर टूट रहा था, योगेश भी खामोश था। घर में एक सन्नाटा था। सुशीला को अनिकेत के दोस्त ने बताया था कि अनिकेत की शादी है, कनाडा में हीं कोर्ट मैरिज कर रहा है वो चार दिसंबर को। सुशीला सन्न रह गयी थी। 4 दिसंबर,चार दिन बाद ही थी, तो क्या बेटे ने माँ बाप को बुलाया तक नहीं।

सुशीला ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा और इसलिए उसने रूठे बेटे को मनाने का प्रयास नहीं किया। दरअसल अनिकेत अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई के समय से ही शालिनी को चाहता था दोनों एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे ,लेकिन योगेश और सुशीला को शालिनी बिल्कुल पसंद नहीं थी। वे अपने हीं रुतवे का घर चाहते थे और शालिनी एक साधारण परिवार से थी। बहुत समझाने पर भी अनिकेत ने शालिनी का साथ नहीं छोड़ा था और दोनों पढ़ाई करते करते ही एक साथ कनाडा चले गए थे। उस समय सुशीला को बहुत गुस्सा आया था कि लड़की तो पीछे ही पड़ गयी और इसी बात पर उसने अनिकेत को बहुत सुना दी थीं, लेकिन अनिकेत ने शालिनी को छोड़ने से मना कर दिया था। गुस्से में योगेश ने उसे घर छोड़ने की धमकी दे दी थी और वह जब से गया था तब से नहीं आया था। लेकिन आज दोनों ही एकदूसरे को देख रहे थे, जैसे पूछ रहे हों ……..क्या इसलिए इतना संघर्ष किया दोनों ने!! दोनों की आँखों में आँसू थे। लेकिन सुशीला की समझ में आ गया था कि ……….हमने प्यार को प्यार रहने ही कहाँ दिया हार और जीत का खेल बना दिया। लेकिन अब वो इस खेल में अपना बेटा नहीं हारेगी और उसने कनाडा जाने की तैयारी शुरू कर दी थी। बेटे को समय रहते मनाने की तैयारी, जानती थी उसका ही खून है गलत बात पर नहीं झुकेगा और नहीं चाहती थी कि वो टूट जाये। जानती थी कि वो अंदर ही अंदर टूट रहा होगा लेकिन कहेगा नहीं। योगेश को भी समझ में आ गया था कि प्रेम में अहम् के कारण घर नहीं टूटने देगा और बेटे की ख़ुशी को भी संम्मान देगा ।

आज सुशीला अनिकेत का ध्यान ही कर रही थी की उसका फ़ोन आ गया था उसे पता चल चुका था कि उसकी माँ उसके पास आ रही है और रोक नहीं पाया था खुद को ।

प्रेम का क़र्ज़ कब किसको चैन लेने देता है प्रेम का क़र्ज़ जिस पर भी चढ़ा होता है वो उसे बहुत दिन अपने ऊपर नहीं रख पाता और प्रेम के बदले प्रेम प्रस्फुटित हो ही जाता है ।