कविता

कैसी आजादी

स्वतंत्र हुऐ हो गये हमें
आज अङसठ साल
मगर देखो आज भी
मेरा भारत बेहाल
भले भगाया अंग्रेजों को
इस सीमा के पार
मगर आज भी बसता है
उन फिंरगियों का अधिकार
भाषा को अपनी खा गये
हम स्वयं बनकर अंग्रेज
पहनावा और रहन सहन से
खुद का किया परहेज
भूल रहे वो शिष्टाचार
जो काम किसी के आते
फूट डाल राजनिति को ही हम अपनाते
कही भी बहन बेटियां
आज नही सुरक्षित है
वहशीपने की हरदम
यहां पर जीत है
भूल गये बङो का आदर
छोटो से स्नैह करना
बस दिखता है हरतरफ आज
भाई भाई का लङना
कैसे मानू हमने आजादी है पाली
स्वतन्त्र कराया देश को मगर
विचारों से है खाली

— एकता सारदा

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने ektasarda3333@gmail.com