कविता

कविता : तेरे बिना

बादलों को देखूँ तो
दिखता है वही शख़्स ,
चांद की जगह
अकसर देखा है
मैंने जिसका अक्स ।
हर समय बस
मेरे दिलोदिमाग पर
छाया है उसका ही ख्याल ,
भूला दिया है प्यार ने तो
रखना खुद का ध्यान ।
कैसे कहूँ तुझसे ?
ऊपर से सागर की तरह
शीतल कब तक रह पाऊंगा,
क्योंकि बड़ा मुश्किल है
अंतर्मन में धधक रही प्रेमाग्नि को
लम्बे समय तक समझाएं रखना,
यकीनन मुश्किल है तेरे बिना
अब तो मेरा जीना ।

— घनश्याम नाथ कच्छावा
सुजानगढ़ (राजस्थान)

One thought on “कविता : तेरे बिना

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता .

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