लघु कथा : दहशत
वो परिवार पति, पत्नी और दो बच्चें जल्दी जल्दी ट्रेन में चढ़े और अपनी सुनिश्चित सीट पाकर संतुष्ट हो कर अपना सामान लगाने लगे| सामान व्यवस्थित ठिकाने लगाकर फिर उनकी नज़र अपनी साथ की सामने की सवारी पर जाती है, जिसे अगले स्टेशन पर उतरना था| वो परिवार पति,पत्नी और उनके दो बच्चें मुस्करा कर उनका स्वागत करते है और अगले स्टॉप के आने तक डेढ़ घंटे में उनमें इतनी घनिष्टता हो जाती है जैसे वे कोई बिछड़े मित्र हो| फिर निश्चित समय पर गन्तव आता है और वो परिवार दूसरे परिवार को हँसते मुस्कराते विदा करता है| वो परिवार एक एक सामान अपने हाथों में लिए उतर जाता है|
उनके जाते उस स्टेशन पर के दस मिनट के स्टापेज पर वे पति पत्नी अपनी मुस्कराहटो से उस जाने वाले परिवार की मिलनसारिता पर निहाल हो उठते दिखते है| फिर अपना कुछ उखड़ा सामान थोडा और सहेजने पति सीट के नीचे झाँकता है| एकाएक उसकी नज़र जिस चीज़ को देख चौंक जाती है वो कोई स्टील का टिफ़िन कैरियर था| पत्नी तुरंत प्रश्न दागती है – ‘ये टिफ़िन उनका तो नहीं छूट गया – पर वो खुद अपना सामान अच्छे से देखकर उठा ले गए थे|’
पति कुछ सोचकर धीरे से कहता है – ‘अक्सर लावारिस टिफ़िन ,सूटकेस ही सार्वजनिक जगहों में धमाकों के कारण बनते है|’
‘मुझे तो पहले ही शक हुआ था, इतनी आत्मीयता वो भी इतनी जल्दी, आखिर क्यों |’
‘सुनो जल्दी करो – टी टी ,पुलिस किसी को ख़बर करो – ट्रेन चलने ही वाली है|’
पति बुरा सा मुहँ बनाकर कोच से बाहर की ओर भागा और जल्दी ही खाली वापस आ गया| ‘कोई नहीं मिला – स्टेशन पर बहुत भीड़ है|’
दोनों आंखें फाड़ें अब एक दूसरे को देख रहे थे मानों एक क्षण बाद रोने ही लगेगे| ट्रेन ने सीटी मारी और हौले से झटका हुआ| दोनों अभी भी घबराए यूँ एक दूसरे को देख रहे थे मानों आखिरी बार नयन भर कर देख रहे हो|
‘अरे भईया – हमारा टिफ़िन रह गया जरा देना – कितना भागते-दौड़ते आया हूँ|’
पति झटके से पीछे से आती आवाज़ की ओर देखता है उतरी हुई सवारी का आदमी उसके पीछे खड़ा था|
रोचक कथा