कविता

बेमेल से रिश्ते

अंजान चेहरो में
ख्वाब ढूँढते हैं
हकीकत से दूर
कुछ रिश्ते
मिलने को तरसते हैं
पड़े किनारे पर चाह लिए
कुछ रिश्ते बेमेल से लगते हैं
दो किनारे हैं
न जाने किसके सहारे हैं
सामने है.. और छू भी ना पाए
ये कैसे किनारे है
वृक्ष तू
छाया मैं
अक्स तू
काया मैं
है आसमां और धरती भी
बूँद को तरसती क्यों
मिलते हैं
और मिल भी ना पाते
कुछ रिश्ते
बेमेल से रह जाते
एक रात है
कुछ बातें भी
लहरों को खींचती
मुलाकातें भी
अधूरे पड़े हैं
चाँद भी
कोशिशें बार – बार करती
मिलने को तरसती
जाने कैसी उलझनों में फँसी
कुछ रिश्ते
बेमेल से लगते हैं ।

— प्रशांत कुमार पार्थ

प्रशान्त कुमार पार्थ

प्रशांत कुमार पार्थ (कवि एवं सृजनात्मक लेखक ) पटना, बिहार Contact :- prshntkumar797@gmail 8873769096 नोट:- विभिन्न पत्रिकाओं एंव प्रकाशन में सम्मिलित की गई मेरी कविताएँ :- 1.अंतराष्टिय हिंदी साहित्य जाल पत्रिका 2. मरूतृण साहित्यक पत्रिका 3. अयन प्रकाशन 4. भारत दर्शन साहित्यिक पत्रिका 5. होप्स मैगजीन 6. सत्य दर्शन त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका 7. जनकृति अंतराष्टिय हिंदी पत्रिका