स्वास्थ्य

डिब्बाबंद पेय पदार्थों का सच

डिब्बाबन्द पेय पदार्थों में स्वाद तो होता है, परन्तु पौष्टिकता नहीं होती। अपने उत्पादन स्थल से फुटकर दुकानों तक पहुँचने में यह लंबा समय लेता है। दूकान से उपभोक्ता के पास पहुँचने में यह और लंबा समय लेता है। कायदे से इनका भंडारण रेफ़्रीजेरेटर में किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं है। पूरे देश में कुछ महानगरों को छोड़कर अंधाधुंध बिजली-कटौती होती है। फुटकर विक्रेता चाहकर भी रेफ़्रीजेरेटर नहीं चला सकते हैं। कस्बों और गाँवों के दूकानदारों के पास रेफ़्रीजेरेटर होता भी नहीं है, लेकिन सभी फ्रूटी, माज़ा, गोल्ड क्वायन आदि आदि पेय तरल रखते हैं और धड़ल्ले से बेचते भी हैं। डिब्बाबन्द पेय पदार्थों का उत्पादन स्थल से डीलर तक  ट्रान्स्पोर्टेशन भी वातानुकूलित कन्टेनर में किया जाना चाहिए, लेकिन लाभ कमाने के शगल में पागल कंपनियां किसी भी नियम का पालन नहीं करतीं। नतीजा यह होता है कि उपभोक्ता तक पहुंचते-पहुंचते ये डिब्बाबंद पेय पदार्थ  फंगस लगने के कारण जहर में परिवर्तित हो जाते हैं। आज से ३० साल पहले जब मैं ओबरा ताप विद्युत गृह में तैनात था, तो उसी पावर हाउस में कार्यरत मेरे मित्र रिज़वान अहमद की मृत्यु फ़्रूटी पीने के कारण हो गई। धूंआ, गर्द, दूषित जल, प्रदूषित हवा और रासायनिक खादों की सहायता से उत्पादित अन्न-जल खाते-पीते भारत के लोगों के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता विकसित देशों की जनता से ज्यादा होती है। लेकिन इसी में जिन लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, वे डिब्बाबन्द पेयों के सेवन से स्वर्ग सिधार जाते हैं। इनमें बच्चों की संख्या अधिक होती है।

अगस्त,५,२०१५, को ‘अमर उजाला’ के प्रथम पृष्ठ पर एक समाचार पढ़ा, जो मैं ज्यों का त्यों, नीचे प्रस्तुत कर रहा हूं —

फ्रूटी में निकली मरी छिपकली”

“बहराइच (ब्यूरो)। छह साल की मासूम पोती को खुश करने के लिए दादा ने जो फ्रूटी खरीदकर दी , उसमें मरी हुई छिपकली निकली। उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज़ के बाद घर भेज दिया गया। खाद्य सुरक्षा अधिकारी ने दुकान पर छापा मारकर फ्रूटी का पैकेट सीज़ कर सैम्पुल परीक्षण के लिए गोरखपुर प्रयोगशाला भेजा है। इसी के साथ दुकान से मिली संबंधित बैच की तीन पेटी फ्रूटी सीज़ कर पाँच सैम्पुल परीक्षण के लिए भेजे गए हैं।”

मैगी पर इतना बवाल हुआ; क्या फ्रूटी पर भी होगा? मेरी समझ से नहीं। इस समस्या का समाधान हम-आपको मिलकर करना होगा। इसका एक ही समाधान है – डिब्बाबंद पेय पदार्थों का बहिष्कार।

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.

2 thoughts on “डिब्बाबंद पेय पदार्थों का सच

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    यह आज कल बहुत हो गिया है कि डिब्बा खोलो और खा लो लेकिन यह पदार्थ खाने लाएक नहीं होते .भारत में ऐसे वाक्य टैली पे देखते ही रहते हैं कि किसी डिब्बे से यह निकला किसी बोतल में से वोह निकला . घर का सादा खाना और साफ़ पानी , यही असली खुराक है .घर में बेछक पराठे भी खाते रहे ,वोह इतने बुरे नहीं ,बाहर की खुराक का तो ऐसा हाल है कि जब भी हम भारत आते हैं ,पहली बीमारी पेट दर्द और जुलाब लगना होती है किओंकि हम शुद्ध खाने के आदी होते हैं और हमारा मिहदा इन बैक्तीरीआ भरपूर खाने के लिए तैयार नहीं होता .

  • विजय कुमार सिंघल

    मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ।
    इसका एक पहलू और है कि किसी पेय की एक बोतल तैयार करने में उसका अनेक गुना जल बरबाद किया जाता है।

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