मौत
मौत तुम भी क्या खूब खेल खेलती हो?
जब हमारे दिल में जीने की चाह होती है
तुम आ टपकती हो; तमाशा करती, मज़ा लेती हो।
जब हम मरना चाहते हैं–
तुम ऊबा देने वाली प्रतीक्षा करवाती हो!
मानो सदियों तक आओगी ही नहीं।
आज भी तुम ग़लत समय में आई हो
जब मै ख्याति के शिखर से थोडा-सा दूर हूँ।
जबकि मै जानता हूँ–
तुम बेवक्त नहीं आती / वक़्त की पाबन्द हो
आग़ाज़ के दिन ही हमारा अंजाम भी तय हो चुका है
मगर क्या आज मेरे वास्ते
तुम्हारी वो घड़ी थोडा आगे नहीं खिसक सकती
मै जानता हूँ तुम्हारी गोद में
असीम सुख है; महाशांति है
कभी न टूटने वाली निंद्रा है
और है …
कभी न ख़त्म होने वाली ख़ामोशी ….!
सुंदर लेखन