कविता

मौत

मौत तुम भी क्या खूब खेल खेलती हो?
जब हमारे दिल में जीने की चाह होती है
तुम आ टपकती हो; तमाशा करती, मज़ा लेती हो।
जब हम मरना चाहते हैं–
तुम ऊबा देने वाली प्रतीक्षा करवाती हो!
मानो सदियों तक आओगी ही नहीं।
आज भी तुम ग़लत समय में आई हो
जब मै ख्याति के शिखर से थोडा-सा दूर हूँ।
जबकि मै जानता हूँ–
तुम बेवक्त नहीं आती / वक़्त की पाबन्द हो
आग़ाज़ के दिन ही हमारा अंजाम भी तय हो चुका है
मगर क्या आज मेरे वास्ते
तुम्हारी वो घड़ी थोडा आगे नहीं खिसक सकती
मै जानता हूँ तुम्हारी गोद में
असीम सुख है; महाशांति है
कभी न टूटने वाली निंद्रा है
और है …
कभी न ख़त्म होने वाली ख़ामोशी ….!

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६

One thought on “मौत

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर लेखन

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