मानव अस्तित्व खतरे में !
मानवविज्ञानी एवं वैज्ञानिकों का मत है – पृथ्वी की उत्पत्ति के लाखों वर्ष बाद पृथ्वी में जीव की उत्पत्ति हुई |महुष्य की उत्पत्ति बहुत बाद करीब चालीश लाख साल बाद हुई वो भी होमो (Homo) के रूप में | परन्तु आधुनिक मनुष्य जिसे Homo Sapiens कहते हैं, उसकी उत्पत्ति करीब २००.००० वर्ष पहले हुई थी, परन्तु मनुष्य के शारीरिक,मानसिक और व्यवहारिक क्रमिक विकास ४०-५०,००० वर्ष पूर्व शुरू हुई | इतने लम्बे समय के बाद मनुष्य अपने आपको जीव में सर्वश्रेष्ट मानते है |यह सच भी है, लेकिन आज का मनुष्य का इतिहास इतना पुराना नहीं है | भारत को ही ले लिया जाय तो वैदिक काल से पहले का कोई प्रमाणित/विश्वसनीय इतिहास उपलब्ध नहीं है | इससे यही कहा जा सकता है कि भारत में आधुनिक मनुष्य का आगमन करीब ५००० साल पूर्व हुआ था |
रामायण, महाभारत में ज्ञान, विज्ञानं, आग्नेय अस्त्र, वरुण अस्त्र, वायु अस्त्र, विमान आदि का उल्लेख है |प्रश्न उठता है क्या वास्तव में वे अस्त्र और विमान मौजूद थे या यह केवल रचनाकार की काल्पना है? क्या वाणों से आग निकलती थी? पानी गिरता था? हवा चलती थी? या अतिशयोक्ति है? इसके प्रबल समर्थकों का उत्तर होगा हाँ ये सब थे पर नष्ट हो गए| अगर उनकी बात मान ली जाय तो फिर प्रश्न उठता है कि कैसे नष्ट हो गए? इससे सम्बंधित ज्ञान की पुस्तकें कहाँ गई? इसके उत्तर में समर्थक चौराहे पर खड़े नज़र आते हैं| कौन सा जवाब दें समझ में नहीं आता है| एक तरफ श्रीकृष्ण को भगवान मानते है और मानते हैं कि धर्म की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण ने महाभारत का युद्ध करवाया| दुसरे तरफ पूर्ण विकसित सभ्यता का विनाश का जिम्मेदार कृष्ण को मानते हैं| श्रीकृष्ण चाहते तो इस युध्द को रोक सकते थे किन्तु रोका नहीं| इसी युद्ध में मानव के साथ मानव इतिहास के सभी उपलब्धियाँ नष्ट हो गई| महाभारत के बाद नई सभ्यता की जन्म हुई| आज का मानव उसी सभ्यता का उपज है|
कहते हैं,”इतिहास अपने आपको दोहराता है|“ आज विश्व की जो दशा है, परिस्थितियाँ जैसे बदल रही है, उससे लगता है मनुष्य की अस्तित्व ही खतरे में है| अहम्, प्रतिस्पर्धा, आणविक अस्त्रों का जाल जैसा फैलता जा रहा है, उसे देखकर यही लगता है कि संसार के सारे वुद्धिजीवी एवं वैज्ञानिक केवल आधुनिक सभ्यता नहीं, ईश्वर की सर्वोत्तम सृष्टि मानव जाति को भी पृथ्वी से निर्मूल करने में तुले हुए हैं| आज अगर मनुष्य की अस्तित्व मीट गयी तो फिर लाखों वर्ष लग जायेंगे पृथ्वी पर मानव सभ्यता विकास होने में| वैज्ञानिक अपना ज्ञान रचनात्मक कार्य में लगायें, ना कि परमाणु या जैविक अस्त्रों के निर्माण में| शक्तिशाली राष्ट्र विनम्रता दिखाएँ और अपनी शक्ति विश्व मानव कल्याणकारी काम में लगाएं| इस सभ्यता को एवं मानव जाति को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिवद्धता दिखाए अन्यथा पृथ्वी एक दिन अपनी सृजन पर आँसू बहायगी|
कालीपद ‘प्रसाद’