बुखार
बुखार सामान्य तौर पर सबको हर मौसम में हो जाने वाली शिकायत है। ऐलोपैथिक डाक्टर इसका कोई कारण नहीं बता पाते। टालने के लिए कह देते हैं कि इन्फैक्शन है या वायरल फीवर है। वास्तव में बुखार कोई बीमारी नहीं बल्कि दवा है। जब शरीर में विकार एक सीमा से अधिक एकत्र हो जाते हैं और किसी अन्य रूप में नहीं निकल पाते, तो प्रकृति उन्हें अन्दर ही अन्दर जलाने का प्रयास करती है । इसी से शरीर का तापमान बढ़ जाता है। यदि हम प्रकृति के इस कार्य में सहयोग करें और बाहर से नये विकार न डालें, तो पुराने विकार जल जाने के बाद बुखार अपने आप ठीक हो जाता है।
यदि हम बुखार को स्वाभाविक रूप से निकलने दें, तो वह शरीर को स्वस्थ करके स्वयं ही चला जाता है। इसके विपरीत उसे दवाओं से दबा देने पर विकार किसी नये और अधिक भयंकर रूप में निकलने लगते हैं। गोलियाँ खाकर बुखार को दबा देना ठीक वैसा ही है जैसे आग में पानी डालना। इससे उस समय तो आग बुझ जाती है, लेकिन जिस ईंधन (अर्थात् विकार) के कारण आग लगी थी वह शरीर में ही रुका रहता है और आगे चलकर बहुत परेशान करता है। प्रायः यह देखा गया है कि गोलियाँ खाकर दबाया गया बुखार कुछ घंटे या कुछ दिन बाद और अधिक तीव्रता से आ जाता है, जिससे रोगी के जीवन को ही खतरा उत्पन्न हो जाता है।
बुखार की चिकित्सा उसकी तीव्रता के अनुसार करनी चाहिए। सबसे पहली बात तो यह है कि बुखार चाहे कम हो या अधिक रोगी को बुखार आते ही उपवास प्रारम्भ कर देना चाहिए। बुखार रहने तक और उसके एक दिन बाद तक भी रोगी को केवल उबाला हुआ पानी ठंडा करके पिलाना चाहिए। इस बीच उसे खाने को कुछ न दिया जाय तो बेहतर है, क्योंकि बुखार में भूख वैसे भी नहीं लगती। लेकिन यदि भूख लगी हो और कुछ देना ही हो, तो मौसमी फलों का रस या सब्जियों का सूप कम मात्रा में देना चाहिए। बुखार के रोगी को दूध और उससे बनी हुई कोई वस्तु देना बहुत हानिकारक है। इसके स्थान पर पतला दलिया या दाल का पानी दिया जा सकता है।
यदि बुखार 100 डिग्री तक हो तो चिन्ता की कोई बात नहीं है। ऐसा बुखार कुछ न करने पर और केवल उपवास करने पर दो या तीन दिन में अपने आप चला जाता है। यदि आप इसके साथ दिन में दो या तीन बार पेड़ू पर ठंडे पानी की पट्टी 15-20 मिनट तक रखें, तो रोगी को बहुत आराम मिलता है।
बुखार में प्रत्येक दिन रोगी का शरीर गुनगुने पानी में गीले किये हुए कपड़े से रगड़कर पोंछ देना चाहिए। इसकी विधि यह है कि एक भगौने में गर्म पानी लें और दूसरे में साधारण। अब एक रूमाल जैसे तौलिये को गर्म पानी में भिगोकर हलका निचोड़ लें और उससे किसी एक अंग जैसे एक हाथ, या एक पैर, या सिर या पेट या पीठ को रगड़कर पोंछ दें। इसके तुरन्त बाद उस अंग को एक सूखे तौलिये से पोंछकर पानी साफ कर दें। अब गीले तौलिये को सादा पानी में खूब धोकर निचोड़ लें और फिर उसे गर्म पानी में गीला करके कोई दूसरा अंग पोंछें। इस तरह करते हुए पूरे शरीर को पोंछ देना चाहिए। अन्त में रोगी को साफ धुले हुए ढीले कपड़े पहना देने चाहिए। इस तरह गर्म पानी में भीगी तौलिया से रगड़ने पर शरीर के सभी रोम छिद्र खुल जाते हैं और विकारों को पसीने के रूप में निकलने का मार्ग मिल जाता है। इससे बु खार में बहुत लाभ होता है और रोगी को नींद भी अच्छी आती है।
यदि शरीर का तापमान 100 डिग्री से अधिक हो, तो रोगी को अनिवार्य रूप से पूर्ण उपवास कराना चाहिए और केवल उबाला हुआ पानी ठंडा करके पीने के लिए देना चाहिए। इसके साथ ही प्रत्येक दिन शरीर को गर्म पानी से पोंछना और पेड़ू पर ठंडे पानी की पट्टी दिन में दो या तीन बार 15-20 मिनट तक रखना आवश्यक है। यदि तापमान 102 डिग्री या उससे अधिक हो, तो सिर को भी गर्मी से बचाना आवश्यक है, ताकि बुखार का कुप्रभाव दिमाग पर न पड़े। इसके लिए पेड़ू के साथ-साथ माथे पर भी ठंडे पानी की पट्टी अवश्य रखनी चाहिए। ऐसी पट्टी तब तक रखनी चाहिए जब तक तापमान कम न हो जाये। कई बार आधा-आधा घंटे तक पट्टी रखनी पड़ती है।
इस प्रकार इलाज करने से कैसा भी बुखार हो, चार-पाँच दिन या अधिक से अधिक एक सप्ताह में अवश्य चला जाता है और रोगी को अधिक कमजोरी भी अनुभव नहीं होती। इसके विपरीत रोगी बुखार उतर जाने के बाद काफी स्वस्थ अनुभव करता है। बुखार के इलाज में मूल मंत्र यह है कि यह धीरे-धीरे आता है और धीरे-धीरे ही जाना चाहिए। एकदम से बुखार चढ़ना और एकदम से उतरना दोनों ही स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं।
— विजय कुमार सिंघल
विजय भाई , बहुत अच्छी जानकारी है .
आभार, भाई साहब !
लाभप्रद आलेख
धन्यवाद, बहिन जी !