राजनीति

बेरोजगारी से त्रस्त उत्तर प्रदेश का युवा

यह बात सभी दलों और विकास की बात करने वाले लोगों का पता है कि उत्तर प्रदेश राजनतिक समाजिक व आर्थिक दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण प्रदेश है और साथ ही साथ विकास की संभावनाओं की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण प्रदेश है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से लेकर अब तक अधिकांश समय तक देश के जितने भीप्रधानमंत्री हुए हं वह सब के सब उप्र से ही हुए है। वर्तमान प्रधानमंत्री भी उप्र से ही हैं और सर्वाधिक 73 सांसद भी भाजपा के ही जीतकर संसद में पहुंचे है। लगभग सभी दल गरीबी हटाओ व विकास का नारा बुलंद करके सत्ता के शीर्ष तक पहुंच रहे हैं। लेकिन इतना सब कुछ होते हुए भी आज प्रदेश का बहुत ही बुरा हाल हो रहा है। 1990 के बाद से प्रदेश में जितनी भी सरकारें आयी हैं उन सभी के कारण आज प्रदेश विकास की दौड़ में लगातार पिछड़ता जा रहा है।

वर्तमान परिस्थितियोें में प्रदेश में युवाओं के सपने लगातार खाक होते जा रहे हैं। आज प्रदेश में शिक्षित बेरोजगारों की बढ़ती तादाद महाविस्फोट का रूप लेती जा रही है। बेरोजगरों में कुंठा और निराशा का गहन अंधकार बढ़ता जा रहा है। विगत दिनों प्रदेश में आयोजित लेखपाल की परीक्षा में दो लाख से कुछ अधिक लोगों ने परीक्षा दी । जबकि सचिवालय की परीक्षा में 386 चपरासी पद के लिए कम से कम 23 लाख 80 हजार से अधिक लोगों ने आवेदन करके इतिहास रच दिया है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि चपरासी पद कंे लिए न्यूनतम योग्यता पांचवी पास है लेकिन कुल आवेदकोें में इनकी संख्या भी न्यूनतम है। इन आवेदकों में पाचवीं पास की संख्या मात्र 50 हजार है। वहीं कक्षा छह से आठ के बीच के अभ्यर्थी 1.60 लाख हैं । इसके बाद पीएचडी के 255, बीटेक , परास्नातक के 24969 और स्नातक के 152730 और शेष कक्षा आठ से ऊपर वाले हंैे। जिसमें इंटर पास आवेदकों की संख्या सात लाख पचास हजार तीन सौ सत्ततर है। जबकि 2681 लोगों ने अपनी योग्यता का उल्लेख तक नहीं किया है।

विश्लेषण करने से यह भी पता चल रहा है कि प्रदेश में हर 13 परिवारों में से एक सदस्य सचिवालय में चपरासी के रूप में काम करना चाहता है। जिन नौकरियों की योग्यता कक्षा पांच पास व साइंकिल चलाने की अनिवार्यता हो वहां पर भी कम से कम दो लाख महिलाओं व लगभग चार सौ किन्नरों के आवेदनों ने रिकार्ड कायम कर दिया है। इतनी बड़ी संख्या में आवेदन करने से अब प्रशासन के समक्ष भी सिरदर्द पैदा हो गया है। प्रशासन के सामने सबसे बड़ी समस्या 386 पदो के लिए जो आवेदन आये हैं उनकी छंटाइ कैसे की जाये और सभी अभ्यथिर्येां के साक्षात्कार कैसे लिये जायें। चतुर्थ श्रे्रणी की भर्ती परीक्षा सरकार के लिए इस कदर चुनौती बनकर खड़ी हो गयी है कि अब साक्षात्कार को रदद करने व नियमावली बदलने पर भी विचार किया जा रहा है। अधिकारियों में इस बात काी भी चर्चा हो रही है कि यदि इसी प्रारूप में साक्षात्कार लिया जाता है तो कम से कम चार साल पूरी प्रक्रिया समाप्त होने में लग जायेंगे।

आज उप्र में बेरोजगारी का जो दंश महामारी के रूप में फैल रहा है उसका चिंतन सम्पूर्ण समाज को करना चाहिये। राजनीति करने वाले व निवेश करके नये उद्योग व कल कारखाने लगाने वाले उद्योगपतियों व व्यापारियों को भी यह चिंतन अवश्य करना चाहिये कि आखिर प्रदेश में बेरोजगारी को कैसे कम किया जा सकता है।

आज सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि उप्र में लधु एवं मध्यम उद्योग ध्ंाधें बंद होते जा रहे हैं। प्रदेश में व्याप्त बिजली संकट,बिगड़ती जा रही कानून और व्यवस्था और खासकर व्यपारियों के मन मंे सुरक्षा को लेकर व्याप्त चिंता के कारण प्रदेश में निवेशकों का भरोसा उठ गया है। एक ओर जहां पुराने उद्योग व कल कारखाने तेजी से बंद हो रहे हैं ं तथा उनको खोलने के लिए कारगर कदम नहीं उठाये जा रहे वहीं दूसरी ओर मुख्यमत्री की लाख कोशिशों के बावजूद प्रदेश में निवेशक व्यापार करने के लिए आकर्षित नहीं हो पा रहे हंैे। बेरोजगारी के लिए सबसे बड़ा एक कारण यह भी है कि प्रदेश के अधिकांश युवा सनातक, परास्नातक और पीएचडी की उपाधि तो प्राप्त कर लेते हैं लेकिन अधिकांश के पास पर्याप्त कौशल प्रशिक्षण का अभाव होता है। अधिकांश लोग सरकारी नौकरियों पाने के चक्कर में फार्म पर फार्म भरते चलते जाते हैं। लेखपाल व अन्य सरकारी नौकरयों में बड़ी संख्या में आवेदनोेें के पहुंचने से यह भी पता चल रहा है कि युवाओं में सरकारी नौकरियों के लिए अभी भी आकर्षण है। लेकिन इस आकर्षण के पीछे भी हिंदुस्तानी परिवारों में एक बड़ी बात यह धर कर गयी है कि सरकारी कर्मचारी मोटी सैलरी लेते हैं। ऊपर से भ्रष्टाचार व दलाली की रकम भी पाते हैं। काम के प्रति लापरवाही रहती है। खूब अवकाश मिलता है तथा काम न करने मन हो तो बीमारी व अन्य किसी व्यक्तिगत कारणें से भी आप अवकाश लेकर खूब मजे कर सकते हो। एक प्रकार से लोगों ने सरकारी नौकरी को आराम और कमाने का बेहतरीन नजरिया बना लिया है। यही कारण है कि अब सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार व आलसीपन रगों में दौड़ रहा है। आज प्रदेश में युवाओं को लुभाने के लिए भारी तादाद में नौकरियों निकाली भी जा रही है। लेकिन सभी नौकरियों की भर्ती में भयंकर धंाधलियों की खबरें भी आ रही हैं तथा न्यायपालिका का हस्तखेप भी हो रहा है जिसके कारण हालात बद से बदतर होतेा जा रहे हैं तथा शिक्षित व अशिक्षित बेरोंजगारांें में भविष्य के प्रति चिंता के बादल उमड़ रहे हैं। सभी दल मिशन – 2017 की तैयारी में लगे हैं लेकिन प्रदेश का युवा बेरोजगार भी अगली बार सत्तारूढ़ दल को सबक सिखने की तैयारी में जुट गया है।
— मृत्युंजय दीक्षित

One thought on “बेरोजगारी से त्रस्त उत्तर प्रदेश का युवा

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख !

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