कविता

रावण कंसो का गुणगान….

रावण कंसो का गुणगान धरा पर जब जब होता है।
धर्म कर्म जग में जब जब मर्यादा अपनी खोता है॥
जब जब हत्यारों की गाथा, गर्व से गायी जाती है
सभ्यता तब तब रोती है, मानवता अश्रु बहाती है॥
छद्म वेश धारण कर, जब शैतान बने कर्ता धर्ता।
लगा मुखौटे संत बने जब, संस्कारों के अपहर्ता॥
जब मानव को मानवता से, ज्यादा आडम्बर भाए।
जनकल्याण से ज्यादा जब, रुतबे की चाहत बढ जाये॥
संत फकीरों को जब, सत्ता की ताकत ललचाती है।
कर्मध्वजा जब कट्टरता के, सम्मुख शीष झुकाती है॥
अंधभक्त होकर जब, बिन सोचे अनुपालन होता है।
जब समाज में सत्यसार, अपनी मर्यादा खोता है॥
जब जब रिश्तों के आंगन में, भेदभाव संचित होगा।
निर्बल अपने मूलभूत, अधिकारों से वंचित होगा॥
जब जब स्वार्थ पताका, धर्म से ऊंचा आसन पायेगी।
जब जब सहिष्णुता पर, कट्टरता परचम फहरायेगी॥
जब जब ईतिहासों पर, नफरत की कीचड वर्षा होगी।
पूर्वजो पर अपमानित शब्दों में, परिचर्चा होगी॥
जब जब राजनीति,नीति के धर्म का पालन त्यागेगी।
तब तब भाई भाई में, नफरत की ज्वाला जागेगी॥
हाथ जोड कर विनती करता हूं, सब ओहदेदारों से।
मत काटो सदभाव की धडकन, नफरत के हथियारों से॥
क्या तुमको भारत माता की, चीख सुनाई नही देती।
आग में जलते आंचल की, क्यूं आग दिखाई नही देती।।
कुर्सी की खातिर मत, यूं शैतानी खूनी दव्ंद करो।
कसम तुम्हें भारत मां की, ये आग लगाना बंद करो॥
कसम तुम्हें भारत मां की, ये आग लगाना बंद करो…..

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.