लघुकथा

बचपन की दोस्ती

सुषमा आँफिसके लिए तैयार हो रही थी तभी अचानक फोन की घंटी बज उठी| जैसे ही फोन रिसीव कर हेलो बोली खुशी के मारे उछल पडी , अरे तुम! इतने दिन से कहॉ थी आज तुम्हे मेरी याद आई, तेरा फोन नम्बर ढुढते ढुढते मै थक गई पर मुझे नही मिला , अब बताओ कैसी हो और कब आ रही हो मिलने| ठिक हूँ बस आज ही सोच रही आ जाउ तुमसे मिलने उसकी बचपन की सहेली रिमी बोली| हॉ – हॉ जल्दी आ जाओ- सुषमा बोली | दोनो ने फोन रख दी| फिर सुषमा ने आँफिस का नम्बर मिलाइ और एक दिन का अवकाश ले ली | सुषमा रिमी के लिए तरह तरह की तैयारीयॉ कर उसकी राह देखने लगी | तभी दरवाजा की घंटी बजी ,सुषमा दरवाजा खोली ,बस अब क्या दोनो एक दुसरे से लिपट गई दोनो के ऑखो मे खुशी के ऑसु बह चले | वर्षो बाद मिली दोनो एक दुसरो को निहारते रही|
तो यह होती है बचपन की दोस्ती जिसमे न राग , न द्वेश बस प्रेम ही प्रेम नजर आती है चाहे वर्षो बाद क्यो न मिले हो|
… निवेदिता चतुर्वेदी….

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

2 thoughts on “बचपन की दोस्ती

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह लाजवाब कथानक

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सत्य कथन

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