गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

जरूरी तो नही हर बात में दो चार करना भी
बुराई छोड़ के सीखो जहाँ में प्यार करना भी।

कलंकित कोख को करना नही ये याद रखना तुम
कमाओ लाख दौलत जन्मदा से प्यार करना भी

जमाने में बदलने का , बहाना मत करो साहिब
सदा सच पर टिके रहना जुबां को धार करना भी ।

वफ़ा भी खूबसूरत शय वक्त पर आजमा लेना ।
मगर तुम बाप माँ के ख्वाब को साकार करना भी ।

जुबां में आप के ताकत मगर ये याद रखिये गा
लिखूँगा सच मुझे आता कलम से वार करना भी ।
किये है पाप तुमने सैकड़ो ये पाप भारी है ।
भरोसे में किसी की जिंदगी बेजार करना भी ।

लफ्ज़ में धार ऐसी है कलेजा चीर देती है ।
फ़क़त बस सीख लो ये ” धर्म ” तुम आचार करना भी ।
धर्म पाण्डेय