कविता

मॉ…

इस जहां में मॉ तेरी महिमा अपरम्पार हैं
इस सुन्दर संसार का तुही पालनहार हैं
जो भी आए तेरे द्वार मॉ
खाली हाथ कभी न लौटे है
भर देती हो खुशियों सें झोलीं
जो चाह उनकी रहती है
भिन्न -भिन्न नामों से मॉ तु
इस जग में जानी जाती हों
कभी दुर्गा ,कभी काली
कभी लक्ष्मी ,कभी सरस्वती
कभी स्वाहा ,कभी स्वाधा
सभी रूपों में मॉ तु
भक्तो की रक्षा कीया करती हों
मै भी मॉ तेरी दासी हूँ
तेरे दर्शन को अभिलाषी हूँ
दे दो अपनी भक्ति का ज्ञान
यही विनती मै तुमसे करती हूँ
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४