गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल- रावण हार गया

जब भी अहम में डूबा कोई वो रण हार गया.
कितना ताकतवर था फिर भी रावण हार गया.

झूठ उसे लगता था प्यारा कोई क्या करता,
सच्चाई कह-कह कर उससे दर्पण हार गया.

प्राॅपर्टी-धन-दौलत-औरत झगड़े की जड़ है,
इसके कारण कोई उसके कारण हार गया.

स्वारथ की इस दुनिया में क्या मोल समर्पण का,
अक्सर स्वारथ जीता और समर्पण हार गया.

बुद्ध लड़े जब युद्ध स्वयं से तो ऐसे जीते,
राजघराने का सारा आकर्षण हार गया.

— डॉ.कमलेश द्विवेदी

One thought on “ग़ज़ल- रावण हार गया

  • रावण हार गिया ,ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी .

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