नया सवेरा…
आप कहते हैं
तो होता होगा नया सवेरा हर दिन
मगर मैने तो अक्सर वही मंजर देखे हैं
कूडे के ढेर में जिन्दगी तलाशते बच्चे
और खेत होते बंजर देखे हैं
आप कहते हैं
तो होता होगा नया सवेरा हर दिन….
हर सुबहा देखता हूं
झीनी सी चादर में लिपटे सुस्त जर्जर तन
उन फुटपाथों पर
जहां भागती हैं जिन्दगी हर रोज
मगर नही बदलता कुछ भी
उनके लिये, हमेशा की तरहा
आप कहते हैं
तो होता होगा नया सवेरा हर दिन….
हर सुबहा नजर आता है
रोज की तरहा हाथ फैलाता बचपन
और दो जून रोटी की
भीख मांगता बुढापा
बयां करता हुआ उस जिन्दगी का दर्द
जहां होता है
तथाकथित नया सवेरा हर रोज
आप कहते हैं
तो होता होगा नया सवेरा हर दिन..
मगर माफ करना
मुझे नही आता नजर
बदला हुआ सवेरा
कुछ बदला है तो केवल चेहरे
जिनके उपर चढ गये है
मानव सेवा के नकाब
और हम हैं कि लाचार बस देख रहे है
राम कि छवि हर नकाब में
बिना जाने उसके पीछे का चेहरा
जो बखान रहा है
नये सवेरे का राग हर पल
पर नही नजर आता कुछ भी नया
आप कहते हैं
तो होता होगा नया सवेरा हर दिन…
सतीश बंसल
सतीश जी ,कुछ नम सी हो गईं ऑंखें .अक्सर लोग कहते हैं ,बहुत उन्ती हो रही है भारत में मगर मैं ऊंची ऊंची इमारतों को नहीं देखता हूँ ,मैं तो बस देखता हूँ जो आप ने लिखा है .