गीत/नवगीत

गीत

बन के चारण भाट जो पैसे वालों के गुण गाते हैं
सरस्वती के पुत्र वो खुद अपना अपमान कराते हैं

हमने ज्ञानी जान के इनको पलकों पर बैठाया था
स्नेह और सम्मान दोनों हाथों से बरसाया था

लेकिन मौका मिलने पर ये राजनीति ही करते हैं
गिरगिट भी शरमा जाए कुछ ऐसे रंग बदलते हैं

हमको दंगे याद हैं सारे सैंतालिस से अब तक के
तब क्या ये सब सोए हुए थे पुरस्कार घर पे रख के

सांप्रदायिक एकता की खातिर फर्ज़ निभाया है
जेब में रख के रकम इनामी पुरस्कार लौटाया है

पैसा वापिस माँगो तो ये हमको आँख दिखाते हैं
गैरतमंद हैं इतने ही तो क्यों हराम की खाते हैं

हालातों से नहीं कोई जांबाज कभी घबराया है
अशोक चक्र महावीर चक्र ना कोई लौटाने आया है

चुप हैं वो जिन्होंने मेहनत से सम्मान कमाए हैं
उछल रहे हैं वही जिन्होंने चापलूसी से पाए हैं

जिनके पास नहीं कुछ लौटाने को वो भी ऐंठे हैं
और कुछ बेचारे हैं जो मुँह लटकाए बैठे हैं

इनको भी ईनाम कोई दे दो ये भी लौटा देंगे
इसी बहाने अखबारों में अपना नाम छपा लेंगे

आओ हम सब करें किनारा ऐसे साहित्यकारों से
मुक्त करें माँ शारदा को अब झूठे, चाटुकारों से

— भरत मल्होत्रा।

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]

One thought on “गीत

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सत्य कथन
    उम्दा रचना

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