कहानी

दो रुपय का नोट

यह शायद १९५८ की बात होगी  जब हम चार दोस्त शहर के एक हाई स्कूल में पड़ते थे। हम गाँव के ही रहने वाले थे लेकिन सालाना परीक्षा से कुछ देर पहले हम शहर में ही एक कमरा किराए पर ले लेते थे। यूं तो हम रोज़ाना प्रभात  होटल पर ही खाना खाया करते थे लेकिन कभी कभी पहलवान के ढाबे पर भी चले जाते थे। पहलवान के ढाबे पर एक दस बारह वर्ष का छोटा सा लंगड़ा लड़का काम किया करता था जो लाठी के सहारे चलता था। बेछक वोह लंगड़ा था लेकिन उस का मुस्कराता चेहरा हर किसी का मन मोह लेता था। लड़के का नाम था खराएती। इस लड़के के साथ हमारा बहुत लगाव सा हो गिया था। एक रविवार को हम चारों दोस्त इस पहलवान के ढाबे पर चले गए। पहलवान बाहर कुर्सी पर बैठा था। एक टेबल पर हम चारों दोस्त बैठ गए। खराएती आर्डर लेने के लिए आया और हम ने उसे  आर्डर देना शुरू किया और उस के साथ बातें भी करते रहे।
दस पंद्रा मिनट बाद जब खराएती खाना ले कर आ रहा था तो उस का पैर फिसल गिया। खाना तो बिखरा ही ,एक पलेट भी टूट गई। पहलवान भागा आया और खराएती को इतनी जोर से चांटा मारा  कि लड़के की आँखों से आंसू बहने लगे। पहलवान बड़बड़ाया ,” साले ने दो रुपय का नुक्सान कर दिया “. हम चारों दोस्त पहलवान की तरफ आये और उस से कहा कि खराएती ने जान बूझ कर नहीं किया था ,उस का पैर फिसल गिया था। हमारा दोस्त बहादर शुरू से ही बहुत भावुक विचारों का रहा है। उस ने दो रुपय का नोट जेब से निकाला और पहलवान को देने लगा लेकिन पहलवान ने इंकार कर दिया और पैसे नहीं लिए। खाना खा कर जब हम ढाबे से बाहिर आये तो बहादर कुछ चुप चुप सा था, उस के दिल में तो खराएती ही था। कुछ दूर जा कर बहादर बोला ,” यार ! यह पहलवान विचारे गरीब खराएती को यूं छोड़ेगा नहीं और उस की तन्खुआह से दो रुपय जरूर काट लेगा। बहादर ने जेब से दो रुपय का नोट निकाला और वापस जा कर वोह नोट चुपके से खराएती की जेब में डाल  दिया।
कुछ सालों बाद हमारे दो दोस्त तो एक पोस्ट ऑफिस में क्लर्क लग गए और मैं और बहादर इंगलैंड आ गए। हमारी शादियां हुईं ,बच्चे हुए और बच्चे भी बड़े हो गए। साल दो साल बाद हम इंडिया जाते  रहते और कुछ देर बाद वापस चले आते  लेकिन कभी भी किसी का पहलवान के ढाबे पर जाने का इतफ़ाक नहीं हुआ। कुछ वर्ष पहले बहादर और उस की अर्धांग्नी कमल इंडिया आये और कुछ देर रह कर वापस आ गए। फिर एक दिन दोनों पती  पत्नी हमें मिलने के लिए हमारे घर आये। बातें करते करते बहादर बोला ,” यार गुरमेल ! इस दफा इंडिया में एक बहुत ही अजीब बात हुई “. मैंने पुछा ,”वोह किया ?”  बहादर बोला ,” याद है ,बहुत देर पहले जब हम पहलवान के ढाबे पर खाना खाने जाते थे तो उस लड़के खराएती से पलेट टूट गई थी और मैंने उसे दो रुपय दिए थे ” ,हाँ हाँ  मुझे याद है ” मैंने कहा।
बहादर बोला ,”इस दफा जब हम शहर में शॉपिंग कर रहे थे तो अच्चानक मुझे खराएती की याद आ गई ,सोचा , कैसा होगा खराएती ,वहां होगा भी या नहीं , देखने के लिए हम उधर चल पड़े लेकिन जब हम वहां पुहंचे तो देखा वहां तो एक शानदार रैस्टोरैंट बना हुआ था और लोग अंदर जा आ रहे थे। एक हसरत भरी निगाह से मैंने रैस्टोरैंट की तरफ देखा और हम आगे चल पड़े। कुछ दूर ही गए थे कि एक शानदार पगड़ी और लंबी दाहड़ी  में एक सरदार जी हमारी तरफ भागे आ रहे थे जो लाठी के सहारे चल रहे थे। मैंने हैरानी से उस की ओर देखा। सरदार जी बोले , “सरदार जी ! मैं खराएती  हूँ ,याद है आप ढाबे  पर खाना खाने आया करते थे , उसी जगह ही अब यह मेरा रैस्टोरैंट है”। ज़िद करके सरदार जी हमें रैस्टोरैंट के अंदर ले गए। काफी बड़ा और शानदार रैस्टोरैंट बना हुआ था। एक तरफ ऑफिस में बैठ कर सरदार जी ने सारी कहानी सुनाई कि “उस घटना के बाद पहलवान जी एक दम बदल गए थे और क्योंकि उन का कोई और नहीं था तो पहलवान जी ने मुझे अपना बेटा  बना लिया था। पहलवान जी को स्वर्गवास हुए पांच साल हो गए हैं लेकिन जाने से पहले वोह इस रैस्टोरैंट को मेरे नाम कर गए थे”। फिर सरदार जी एक फोटो में जड़े हुए दो रुपय के नोट की तरफ इशारा करके कहने लगे , आप का दिया हुआ दो रूपए का नोट वोह ही है जो उस दिन आप ने मुझे दिया था और यह नोट मेरे   लिए वरदान बन कर आया था  इसी लिए मैंने इसे फोटो फ्रेम करवा लिया ,जब भी इस फ्रेम को देखता हूँ ,आप की याद आ जाती है “
बहादर से यह कहानी  सुन कर मैं भी हैरान हो गिया और मन ही मन में खराएती को मिलने के लिए उत्सुक हो गिया।

3 thoughts on “दो रुपय का नोट

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह लाजवाब सृजन आदरणीय जय माँ शारदे —-

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    आँखें नम हो गई भाई

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद बहन जी .

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