कविता

दिवाली

हमारा जीवन सतरंगी हैं
कभी होली कभी दिवाली है
दिवाली में मॉ लक्ष्मी की
घर-घर पूजा होती है
अपने घरों में दीप जलाकर
अंधियारा दूर भगाते हैं
खुशियों की बना रंगोली
घर को खुब सजाते है
पकवानो के खुशबू से
सभी मंत्र मुग्ध होते है
किसी के हाथ में बम पटाखा
किसी के हाथ फुलझाडियॉ
पटाखों के शोरो सें
गुँज रही है टोलियॉ
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४