कविता

आज तो पहली रात है !

आज दिए की लौ को गौर से न देखना
वो शरमा के बुझ जायेगी !
आज उसके मंद मुस्कान को छेड़ न देना
वो बल खा के गिर जायेगी !

आज दिए की लौ को बुझने न देना
वो हवा से रिश्ता तोड़ लेगी
आज उसे यह राज बता न देना
हवा के बिना वो भी न बचेगी

आज दिए की लौ को बड़ी न करना
वरना वो बाती को देख लेगी
उसकी जलन को देख रो पड़ी
तो बाती की मंजिल ही छीन लेगी

आज दिए की लौ को शमा न कहना
वो शायरी जान जायेगी
किसी परवाने को मरता देख भी
खुद पर ही इतरायेगी

आज दिए की लौ के रंगो को न देखना
घी और तेल का फर्क जान जायेगी
उस आँगन के तेल की लौ को
खुद से कम आंकेगी

आज दिए की लौ को
दिवाली है मत बताना कभी
हर रात गरीब के घर रहना
वो अपनी तौहीन समझेगी !

आज दिए की लौ के
पटाखे पास न रखना
इस मानव निर्मित बला से
वों नहीं खेल पायेगी

आज दिये की लौ का
ज़लज़ले से रिश्ता न बता देना
रौशनी की यह कन्या
मुफ़्त मे बदनाम हो जायेगी

अब हट भी जाओ सामने से
लगा की लौ ने ही कहा अभी अभी
आज तो पहली रात है
पूरी दिवाली बाकी है अभी !!

– –सचिन परदेशी ‘सचसाज’

सचिन परदेशी

संगीत शिक्षक के रूप में कार्यरत. संगीत रचनाओं के साथ में कविताएं एवं गीत लिखता हूं. बच्चों की छुपी प्रतिभा को पहचान कर उसे बाहर लाने में माहिर हूं.बच्चों की मासूमियत से जुड़ा हूं इसीलिए ... समाज के लोगों की विचारधारा की पार्श्वभूमि को जानकार उससे हमारे आनेवाली पीढ़ी के लिए वे क्या परोसने जा रहे हैं यही जानने की कोशिश में हूं.

One thought on “आज तो पहली रात है !

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

Comments are closed.