बाल कविता

दिवाली आ गयी

आ गयी दीपावली देखो रौशनी का त्योहार,
चलो दीप जलाके मिटा दें दुनिया का अंधकार।
आज खिलौने खरिदेंगे हम छोड़ेंगे फूलझड़ियाँ,
नये-नये कपड़े पहनेंगे खायेंगे खूब मिठाईयाँ।

सदय बिक्की आयुष ने सुंदर घरौंदा बनाया है,
अंशिका रितु आकृति ने रंगीन रंगोली सजाया है।

रंग-बिरंगे बल्बों से सजा है सबका घर-आँगन,
साफ-स्वच्छ-सुंदर लगता है चारो ओर का आवरण।

कहती है दादी इसी दिन रामजी आये थे रावण-वध कर,
अयोध्या वासी इसी खुशी में दीप जलाये थे घर-घर।

अंधेरों पर प्रकाश की जीत होती आज के दिन,
अमावश भी लगता है आज तो पूनम से रंगीन।

हम एक-दूसरे को देते हैं दीपावली की बधाई,
आशीर्वाद देने घर-घर में लक्ष्मी माता आई।
– दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।